Book Title: Mahavir Parichay aur Vani
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 304
________________ ३०८ महावीर : परिचय और वाणी जाएँगे । यह जरूरी नही है । अगर चीजो को त्यागने से आप बदल सके तो चीजें बहुत कीमती हो जाती है । अगर चीजो को छोडने से मुझे मोक्ष मिलता है तो ठीक है, मोक्ष का भी सौदा हो जाता है । चीजो की ही कीमत चुकाकर मोक्ष मिल जाता है । महावीर वस्तुओ को मूल्य नही दे सकते । इसलिए मैं कहता हूँ कि उनकी दृष्टि मे वस्तुग्रो के त्याग का नाम वृत्ति-सक्षेप नही है । कुछ लोग परेशानी को ही तप समझ लेते है । जो परेशानी को तप समझ लेते है उनकी नासमझी का कोई हिसाव नही है । तप से ज्यादा आनन्द की कल्पना नही की जा सकती । तपस्वी के आनन्द का कोई अन्त नही होता । जिस दिन आपकी सारी शक्ति वृत्तियो से मुक्त होकर बुद्धि को मिल जाती है, उसी दिन आप मुक्त हो जाते है । जिस दिन समस्त शक्तियाँ बुद्धि की तरफ उसी तरह प्रवाहित होने लगती है जिस तरह नदियाँ सागर की तरफ प्रवाहित होती हैं, उसी दिन वुद्धि का महासागर आपके भीतर फलित होता है । उस महासागर का आनन्द, उस महासागर की प्रतीति और अनुभूति दुख की नही, परे - ज्ञानी की नही, परम आनन्द की है । वह परम प्रफुल्लता की अनुभूति है, किसी फूल के खिल जाने-जैसी या किसी मृतक मे जीवन आ जाने जैसी । बाह्य तप का चौथा चरण है 'रस- परित्याग | रस परित्याग किन्ही रसो या स्वादो का निषेध नही है । वस्तुत साधना के जगत् मे स्थूल से स्थूल दिखाई पडनेवाली बात भी स्थूल नही होती । चूंकि सूक्ष्म के लिए कोई शब्द नही होता, इसलिए स्थूल शब्दो का प्रयोग करना पडता है । वाह्य जगत् के शब्दो का प्रयोग करना मजबूरी है । रस की पूरी प्रक्रिया क्या है ? स्वाद आपकी जिह्वा मे होता है या आपके मन मे? स्वाद कहाँ है ? रस कहाँ है ? यह जान लें, तभी रस- परित्याग का अर्थ खयालमे आ सकेगा । जो स्थूल मे देखते है, उन्हे लगता है कि स्वाद या रस वस्तु मे होता है, इसलिए वस्तु को छोड देना ही उनकी दृष्टि मे रस - परित्याग है । वस्तुत. वस्तु मे स्वाद नही होता । वस्तु केवल निमित्त बनती है । अगर भीतर रस की पूरी प्रक्रिया काम न कर रही हो तो वस्तु निमित्त बनने मे भी असमर्थ होती है । जैसे—यदि आपको फाँसी की सजा दी जा रही हो और उसी समय खाने को मिष्ठान्न, तो वह मिष्ठान्न आपको मीठा नही लगेगा, यद्यपि वह अभी भी मीठा ही है । पर जो मीठे सवेदनशील लेकिन मन को भोग सकता है, वह बिलकुल अनुपस्थित हो गया है । स्वाद-यत्र के तत्त्व अव मी भीतर खवर पहुँचाएँगे कि मिठाई मुँह पर है, जीभ पर है, उन खवर को लेने की तैयारी नही दिखाएगा । हो सकता है कि मन उस खबर को ले ले, फिर भी मन के पीछे जो चेतना है उसके और मन के बीच का सेतु टूट गया है, मम्बन्ध टूट गया है । मृत्यु के क्षण मे वह सम्वन्ध नही रह जाता । आपके व्यक्तित्व को बदलने के लिए चिकित्सक शॉक - ट्रीटमेट का उपयोग करते रहे है । शॉक

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