Book Title: Mahavir Parichay aur Vani
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

View full book text
Previous | Next

Page 308
________________ ३१२ महावीर : परिचय और वाणी मलीनता अपने मे लीन होने का पर्यार । महावीर पाहते हैं : मीन तो जाना, मान में लीन हो जाना ताकि दूगग बने ही नहीं। उनका एक बल पास गरे आत्मरमण-~-अर्थात् अपने मे ही रमना । महावीरो निनो दे। ऐगा प्रतीत होगा कि वे एक ऐने फूल है जिनकी पगलिया बन्द हो गई। महानोर अपने भीतर है। जैसे फूल के भीतर कोई भंवरा बन्द हो गया हो। उनकी गारी नेतना नलीन हो गई है अपने मे।

Loading...

Page Navigation
1 ... 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323