Book Title: Mahavir Parichay aur Vani
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 314
________________ ३२० महावीर : परिचय और वाणी यह दृष्टि वहुत उलटी है। महावीर कहते हैं कि अगर सेवा करने मे थोडी-सी भी वामना है, इतना भी मजा आ रहा है कि मैं कोई विशेप कार्य कर रहा हूँ, तो फिर मै नए कर्मों का संग्रह करता हूँ। फिर सेवा भी पाप वन जाएगी, क्योकि वह भी कर्म-बन्धन लाएगी। ____ महावीर की दृष्टि मे अगर पुण्य भी भविष्योन्मुख है तो वह पाप बन जाता है । यह वडा मुश्किल होगा समझना। पुण्य भविष्योन्मुख होने से पाप बन जाता है, क्योकि वह भी वन्धन बन जाता है। महावीर कहते है कि पूण्य भी पिछले किए गए पापो का विसर्जन है। यदि मैने आपको एक चॉटा मार दिया है तो मुझे आपके पैर दवा देने पडेगे । इससे वह जो जागतिक गणित है, उसमे सन्तुलन हो जाएगा । ऐसा नहीं कि पैर दवाने से मुझे कुछ नया मिलेगा, वल्कि सिर्फ पुराना कट जाएगा। और जब मेरे सब पुराने कर्म कट जाएँगे तव मै गन्यवत हो जाऊँगा-मेरे खाते में दोनो तरफ ऑकडे वरावर हो जाएंगे। महावीर कहते है कि यही शून्यावस्था मुक्ति कहलाती है । मोक्ष तो तब तक नही हो सकता जब तक धन या ऋण कोई भी ज्यादा है । मुक्ति का अर्थ ही यही है कि अब मुझे न कुछ लेना है और न कुछ देना । इसको महावीर ने निर्जरा कहा है। निर्जरा के सूत्रो मे वैयावृत्य वहत कीमती है। महावीर नही कहते हैं कि दया करके सेवा करो, क्योकि दया ही बन्धन बनेगा। कुछ भी किया हुआ बन्धन बनता है । महावीर कहते है कि खुला रखो अपने को, कही कोई सेवा का अवसर हो और सेवा की भावना भीतर उठती हो तो रोको मत, सेवा हो जाने दो और चुपचाप विदा हो जाओ । पता भी न चले किसी को कि तुमने सेवा की । तुमको भी पता न चले कि तुमने सेवा की । यह वैयावृत्य है । वैयावृत्य का अर्थ है-उत्तम सेवा, साधारण सेवा नहीं। अगर किसी की सेवा करने मे रस लिया तो फिर सम्बन्ध निर्मित होगे और यह भी समझ लेना चाहिए कि रस लेकर सेवा करना एक तरह का गोषण है महावीर की दृष्टि मे। अगर कोई दुखी है, पीडित है और मैं उसकी सेवा करके स्वर्ग जाने की चेष्टा कर रहा हूँ तो मैं उसके दुख का शोपण कर रहा हूँ, मै उसके दुख को स्वर्गजाने का साधना बना रहा हूँ। अगर वह दुखी न होता तो मै स्वर्ग न जाता । जव धनपति धन चूसता है तव आप उससे कहते है कि वह दूसरो के दुख पर सुख इकट्ठा कर रहा है। लेकिन जब एक पुण्यात्मा दीन-दुखियो की सेवा करके अपना स्वर्ग खोज रहा है तव आपको खयाल नही आता कि वह भी किसी गहरे अर्थ मे गोपण कर रहा है। महावीर कहते है कि सेवा से मिलेगा कुछ भी नही, केवल कुछ कटेगा, कुछ छुटेगा, कुछ हटेगा। महावीर की दृष्टि मे सेवा मेडिगनल है, दवाई की तरह है। दवा से कुछ मिलेगा नहीं, सिर्फ बीमारी कटेगी। ईसाइयत की मेवा टॉनिक की तरह है।

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