Book Title: Mahavir Parichay aur Vani
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 305
________________ महावीर परिचय और वाणी ३०९ ट्रारमट का दुर इतना ही अथ है कि आपकी चेतना और आपके मन का सतु क्षण भर को टूट जाए। वस्तु में रस नही होता, मिफ रस का निमित्त होता है। वैनानिक कहते है कि रिसी वस्तु म बाइ रग भी नहा हाता, वस्तु वेवल निमित्त होती है किसी रग का आपके भीतर पैदा करने के लिए। जब आप नहीं हाते, जब कोई देखनवाला नहीं होना तव वस्तु रगहीन हो जाती है। इसी प्रकार इस बात को सयाल म ले लें कि हमार मब रस वस्तुआ और हमारी जीभ ये वीच सम्बध हैं। लेकिन बात इतनी ही नहीं है । यदि रस वस्तुआ आर जीम के बीच सम्बघ-मान है ता रस-त्याग बहुत सरल हो जाता है। आप अपनी जीभ का सवेदनहीन कर लें या वस्तु का त्याग कर दें ता रम नष्ट हो जायगा । क्या इसे ही रस-त्याग कहेंगे? साधारणत महावीर की पर म्परा मे चलनेवाले साधु तो यही परते हैं। वे वस्तु को छोड़ देते हैं और सोचते हैं वि रस से मुक्ति हो गई। लेकिन रस से मुक्ति नहीं हुई। वस्तु म ममी भी उतना हा रस है और जीम म अमी भी उतनी ही सवेदनशीलता । महावीर न रस को अप्रस्ट परने की सलाह नहीं दी है। रस-परित्याग करने को कहा है। अक्सर तो वात एमा हाती है कि जो छिप जाता है, वह छिपकर और भी प्रवर तथा सशक्त हो जाता है। मन को मार डारन स रस-त्याग नहीं हा सकता। हम सोचते हैं कि मन का दवा-दबाकर मार डालना सम्गव है। लेकिन मन का नियम यह है कि जिस बात को हम मन से नष्ट करना चाहत है मन उसी बात में ज्यादा रमपूण हो जाता है। अगर आपको पोइ समयाए वि मर जाआ तो जीन का मन पदा होता है। मन विपरीत म रम रेता है। इसलिए मन को मारने स रम परित्याग नहीं हो सकता और न यस्तुआ को छोडने स ही यह सम्भव है । हम समी तो मन से लड़ते है, रेपिन हमन कौन स रस पा परित्याग पिया है ? मात्राआ ये भेद नरे हा रेविन है हम ममा मन स रहनवाले । लेविन भी इस एडाई सफाई पर नहीं पड़ता। इमरिए महावीर मन से रडन या नही रहत। ना मी मन स ल्हन मे लगेगा, वह रम को जगाने म लगेगा। रम-परित्याग अथवा रस विसजा पा सूत्र है कि चेतना और मा या समय टूट जाप। य सम्बध करा टूटगा ? जब तक में यह साचता हूँ कि मैं मन हूँ तब तर पह मम्य पायम रहेगा। इस सम्बध प टूट जान पा अय है यह जानना कि मैं मन नहीं हैं। इमा रमहिन मिन हो जाता है यो जाता है। रग-परित्याग का प्रापया है-मन के प्रति गाला नाय । गव भाप भोजन पर हैं तव में यह नहीं रहेगा कि आप भोजन 7 पर यह रमपूर्ण है। में आपगे यह भी नहीं पता कि घाप अपनी जीन पो जरा से परारि जाम रस पनी है । मैं आपगे पहुँगा कि आप नाना नरें, जीम गा पाद रेगे दें, मनमा पूग पियाम होन दें fr यह पहन

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