Book Title: Mahavir Parichay aur Vani
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 302
________________ ३०६ महावीर : परिचय और वाणी वहुत मुश्किल से लगती है, पर नियम से बंधी हुई भूख रोज लगती है। अनशन से स्वाभाविक भूख का पता चलता है और नियम से बंधी हुई भूख मिट जाती है।) अनशन आपके भीतर वास्तविक भूख को उघाडने मे सहयोगी होगा। जव वास्तविक भूख उघड आए तव, महावीर कहते है, उणोदरी मे आइए । जव दास्तविक उघड आए तो वास्तविक से भी कम लीजिए और अवास्तविक भूख को तो कभी पूरा कीजिए ही मत । यह ( अवास्तविक भूख) खतरनाक है। वास्तविक भूख को पूरा करते समय थोडी जगह खाली रखिए। ____एक सीमा तक ही हमारी भूख, हमारी वासनाएँ ऐच्छिक होती है। इस सीमा के बाद वे 'नान-वालटरी' हो जाती है। जिस सीमा के पार भूख अनैच्छिक हो जाए, उसी सीमा पर रुक जाना उणोदरी है। तीन रोटी की जगह ढाईरोटी खा लेने से ही उणोदरी नही हो जायगी। उणोदरी का अर्थ है इच्छा के भीतर रुक जाना, अपनी सामर्थ्य के भीतर रुक जाना। (अपनी सामर्थ्य के बाहर जाते ही आप गुलाम हो जाते है।) महावीर कहते है कि चरम पर पहुँचने के पहले रुक जाना । जव क्रोध मे किसी पर हाथ उठ जाए और उसके करीव पहुँच जाए, तब उसे रोक लेना । जहाँ मन सर्वाधिक जोर मारे, उसी सीमा से वापस लौट आना । स्मरण रहे कि कुछ न करना आसान है, लेकिन चरम सीमा से लौट आना बहुत मुश्किल । फिल्म न देखने मे उतनी अडचन नही है जितनी अडचन इस बात मे है कि उस समय उसे छोड दिया जाए जिस समय आपकी उत्सुकता चरम सीमा का स्पर्श करती रहे । किसी को प्रेम ही नहीं किया तो इसमे क्या अडचन हो सकती है ? लेकिन प्रेम जब अपनी चरम सीमा पर पहुंचा हो तव उसके पहले ही वापस लौटना अत्यन्त कठिन है। उणोदरी अनशन का ही उपयोग है, लेकिन थोड़ा कठिन है । आम तौर से आपने सुना होगा कि यह सरल प्रयोग है और यह भी कि जिससे अनशन न बने वह उणोदरी करे । मैं आपसे कहता हूँ, अनशन से उणोदरी कठिन प्रयोग है । जिससे अनशन बन सकता है, वही उणोदरी कर सकता है। महावीर का तीसरा वाह्य तप है वृत्ति-सक्षेप । इसका परम्परागत अर्थ यह है कि अपनी वृत्तियो और वासनाओ को सिकोड लो-जहाँ दस कपड़ो से काम चल सकता है, वहाँ ग्यारह कपड़े न रखना, अगर एक बार भोजन से काम चल सकता है तो दो बार भोजन न करना। लेकिन महावीर का अर्थ गहरा है और परम्परागत अर्थ से भिन्न है । उनकी दृष्टि मे वृत्ति-सक्षेप एक प्रक्रिया है। आपके भीतर प्रत्येक वृत्ति का पृथक-पृथक केन्द्र है। सेक्स का एक निजी केन्द्र है, भूख का एक अलग केन्द्र । इसी प्रकार प्रेम का एक केन्द्र है और बुद्धि का एक केन्द्र । लेकिन साधारणत हमारे सारे केन्द्रो के कार्य मिश्रित हो गए है, 'कन्फ्यूज्ड' है, कारण कि एक केन्द्र का काम हम दूसरे केन्द्र से लेते रहते हैं, दूसरे का तीसरे से, तीसरे का चौथे से। इस प्रकार

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