Book Title: Mahavir Parichay aur Vani
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 268
________________ २७० महावीर : परिचय और वाणी हमारे लिए सयमी है स्वय से लडता हुआ आदमी। महावीर के लिए सयमी है अपने साथ राजी हुआ व्यक्ति । हमारे लिए सयमी है अपनी वृत्तियो को सँभालता हुआ आदमी; महावीर के लिए सयमी है वह जो अपनी वत्तियो का मालिक हो गया है । सँभालता तो वही है जो मालिक नहीं है। लडना पडता इसलिए है कि आप वृत्तियो से कमजोर है। महावीर के लिए सयमी का अर्थ है आत्मवान्, इतना आत्मवान् की वृत्तियाँ उसके सामने खडी भी नही हो पाती। ऐसा नही कि उसे ताकत लगाकर क्रोध को दवाना पडता है। जिसे हम ताकत लगाकर दवाते है, वह दवता तो नही, उलटे परेशान करता है और आज नहीं तो कल, फूट पडता ही है। (१२-१३ ) शक्ति जब स्वय के भीतर होती है तो वत्तियो से लडना नही पडता । वृत्तियाँ आत्मवान् व्यक्ति के सामने सिर झुकाकर खड़ी हो जाती है। हम जिसे सयम कहते है वह दमन है और हमारा सयमी आदमी उस सारथी के समान होता है जो रथ मे घोडो की लगाम पकड़े वैठा है। महावीर की दृष्टि मे संयमी वह शक्तिवान् व्यक्ति है जो अपनी शक्ति में प्रतिष्ठित है। उसका शक्ति मे प्रतिष्ठित होना या अपनी ऊर्जा मे होना ही वृत्तियो का निर्वल और नपुसक हो जाना है। महावीर अपनी कामवासना पर वश पाकर ब्रह्मचर्य को उपलब्ध नहीं होते, वे अपनी हिंसा से लडकर अहिसक नही बनते और न अपने क्रोध से लड़कर ही क्षमा करते है। ब्रह्मचर्य की भी ऊर्जा है, इससे काम-वासना सिर नही उठाती। चूंकि वे अहिंसक है, इसलिए हिंसा का वश नहीं चलता। क्षमा की इतनी शक्ति है कि क्रोध को उठने का अवसर नहीं मिलता। महावीर के लिए स्वय की शक्ति से परिचित हो जाना ही सयम है । 'सयम' नाम वहुत अर्थपूर्ण है । इसके लिए अग्रेजी मे 'कट्रोल' शब्द का प्रयोग करते है, जो कि गलत है। अग्रेजी मे सिर्फ एक ही शब्द है जो सयम का पर्याय बन सकता है, यद्यपि भापागास्त्री उसे अनुपयुक्त कहेगे। वह शब्द है 'ट्राक्विलिटी' । सयमी वह है जो विचलित नहीं होता, जो अविचलित रहता है, निकम्प है, ठहरा हुआ है। गीता में कृष्ण ने जिसे स्थितप्रज्ञ कहा है, महावीर के लिए वही सयमी है। अमयम का अर्थ है कम्पन, वेभरिंग, ट्रेम्बलिंग। काँपते हुए मन का नियम है कि वह एक अति से दूसरी अति पर चला जाता है। फिर ऊवेगा, परेशान होगा। सव वासनाएँ उवा देती है। उनसे मिलता कुछ नही है। मिलने के जितने सपने थे, वे और टूट जाते है। वासना से घिरा मन अति पर जाता है, फिर वासना से ज्व जाता है और तव दूसरी अति पर चला जाता है, जहाँ वह वासना के विपरीत खड़ा हो जाता है। कल तक ज्यादा खाता था, आज से एकदम अनगन करने लगता है। (१४ ) इमलिए ध्यान रखिए, अनशन की धारणा सिर्फ ज्यादा भोजन उपलब्ध

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