Book Title: Mahavir Parichay aur Vani
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 273
________________ सप्तम अ याय सयम की विधायक दृष्टि इह लोए निप्पिनासस्स, नत्यि किंचि विदुक्कर ।। --उत्त० २० १९, गा० ४४ (१) सयम मृत्यु के भय स सिकुद गए चित्त की रुग्ण दशा नहीं है वह अमत ती वपा म प्रफुल्लित हा गए तथा नत्य करत हुए चित्त की दशा है । सयम विमी भय रा रिया गया साच रही है और न रिसा प्रलोभन स आरोपित की गई आदत । वह किमी अभय म चित्त का पलाव और विस्तार है, पिसी आनद की उपलधि म अतर्वीणा पर पटा हुआ मगीत । सयम निगेटिव नही, पाजिटिव है । लेकिन परम्परा उमे निषेध मानवर चलती है क्यापि निपेव जामान है। मरना आमान है जीना घहत कठिा है। सिकुड जान से ज्यादा आसान पुछ भी नहीं । मिलने के लिए अतर मा या जागरण चाहिए । सिकुडन ये रिए किती जाग रण या अथवा किसी नई शत्ति वा जनरत नहीं पड़ती। महावीर ता पूल जस सिले हुए व्यक्तित्व हैं। हां, उनके पीछे जा परम्परा वनती है, उराम सिवुड गए लागा की धारा की अस । बनती है। पीछे 4 युगा में इन सिटे हुए लागा का देणार महावीर के मम्मघ म निणय होने रात हैं। रगता है, महावीर कुछ छोट रहे हैं, यही रायम है। नहीं लगता कि महावीर कुछ पा रहे हैं. यही मयम है। और ध्यान रखें पाए बिना साइना असम्भव है। जा पाए विना छोडता है पर ण हो जाता है सिट जाता है। पाए बिना साइना असम्भव है। (२) महावीर या पाना इतना विराट है पि उसकी तुलना म जो पर तप उनये हाय मपा, वह मूवर्ग और व्यथ हा जाता है। (३) निषेधा मर गयम स पूर पदा नही हात घेवर बोट उपजत हैं। और जो पार बाहर जाम प्रवट हो से सजाते हैं भातर मात्मा म घिस जात है। गरिए जिले म मयमी ने * यह पोष्टित निपाइ पडता है रिसा पहाड नो दाता हुमा माम पडता है। उगम पारा तरप आमुना पी पाराए पटठी १ नोइस कोर मे सप्णारहित है उसके लिए पुछ भी पटिन नहीं है ।

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