Book Title: Mahavir Parichay aur Vani
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 276
________________ २७८ महावीर : परिचय और वाणी है। आप उसी के द्वारा भीतर पहुंच सकेगे। जिस व्यक्ति ने अभी वाहर के रगो को भी नही जिया और जाना, उसे भीतर के रगो तक पहुँचने मे बड़ी कठिनाई होगी। (१०) आपकी जो इन्द्रिय सर्वाधिक सवेदनगील है, उससे अगर आप लडेगे तो वह कुठित हो जायगी। समझ ले कि आपने अपने हाथो ही अपना मेतु तोड लिया है। अगर आप विधायक सयम की धारणा से चले तो आप उसी इन्द्रिय को मार्ग वना लेगे, उसी पर आप पीछे लौट आएँगे। और ध्यान रहे, जिस रास्ते से हम वाहर जाते है. उसी रास्ते से सीतर आना सम्भव होता है। रास्ता वही होता है, सिर्फ दिशा बदल जाती है । यह आपको अजीव लगेगा, लेकिन मै जोर देकर कहना चाहता हूँ कि लोग इन्द्रियो के कारण वाहर नही भटक्ते, उन इन्द्रियों के कारण बाहर भटक जाते है जिनके रास्ते वे तोड देते है। __ महावीर ने आत्मा की तीन स्थितियाँ कही है । एक को वे कहते हैं वहिर् आत्मा अर्थात् वह आत्मा जो अभी इन्द्रियो को बाहर की ओर उपयोग कर रही है । दूनरी को महावीर अन्तरात्मा की संज्ञा देते है। यह वह आत्मा है जो अब इन्द्रियो का भीतर की तरफ उपयोग कर रही है । और तीसरी को महावीर कहते है परमात्माअर्थात् वह आत्मा जिसका वहिर् और अन्तर मिट गया है, जो न बाहर जा रही है और न भीतर आ रही है। जो बाहर जा रही है वह वहिर आत्मा हे, जो भीतर आ रही है वह अन्तरात्मा है, जो कही नहीं जा रही है और अपने स्वभाव मे प्रतिष्ठित है, वह परमात्मा है। इन्द्रियो का यह वहिरूप हमे पदार्थ से जोडता है। इन्द्रियाँ जब बाहर जोडती है तव वे पदार्थ से जोडती है और भीतर चेतना से जोड़ती है। जिस जगह वे हमे पदार्थ से जोडती है, उस जगह उनका रूप अति स्थूल होता है। लेकिन वे ही इन्द्रियाँ हमे स्वय से भी जोडती हैं । इन्द्रियो का बहुत स्यूल रूप ही बाहर प्रकट होता है। (११) परमात्मा तक पहुँचना हो तो अन्तरात्मा से गुजरना पडेगा। वहिर आत्मा हमारी आज की स्थिति है, मौजूदा स्थिति । परमात्मा हमारी सम्भावना है, हमारा भविष्य, हमारी नियति । अन्तरात्मा हमारा यात्रा-पथ है। उससे हमे गुजरना पडेगा भीतर जाने के रास्ते वे ही है जो बाहर जाने के रास्ते है। दूसरी बात यह है कि बाहर इन्द्रियाँ स्थूल से जोडती है और भीतर सूक्ष्म से। इसलिए इन्द्रियो के दो रूप है। एक को हम ऐन्द्रिक शक्ति कहते है और दूसरी को अतीन्द्रिय शक्ति । (१२) रूसी वैज्ञानिक वोसिलिएव के प्रयोगो के परिणामस्वरूप कई अधै लड़क हाथ से पढने लगे है। रूस मे ही एक अधी लडकी को पैर से पढवाने की कोशिश की गई। दो महीने मे वह लडकी पैर से भी पढ़ने लगी। फिर वह दीवाल के पीछे रखे हुए वोर्ड को भी पढने मे सफल हुई। अन्त मे उसे कई मील के फासले पर रखी हुई किताव को खोलकर पढवाया गया और वह उसे भी पढने लगी। वासिलिएव ने

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