Book Title: Mahavir Parichay aur Vani
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 297
________________ महावीर परिचय और वाणी ३०१ वय आपका बताता हूँ। तप का अर्थ है-~~-अपनी इंद्रिया की मालवियत, उहें न दन और उनस आनापारन परवान का सामय्य । पट कहता है कि भूख लगी है लेकिन आप कहत हैं---मूरा लगा है ता लगे, मैं आज मान देने को राजी नहा हूँ और आप माजन नहीं रेत जार न भाजन का चितन परत है । जव लापमा सफल इस अवस्था या पहुंच जाता है और आपम अपनी इद्रिया पर शासन करने के क्षमता उत्पन हा जाती है तब आप अनान करने के याग्य हो जाते हैं । उपवास ह सरता है तभी जब चितन पर आपका वश हो । रेविन चितन पर आपका कोई वा नहीं है। विचार को मालक्यित या काई प्रशिक्षण आपरा नहीं दिया गया । । (१९) लेकिन अगर आप मुनिश्चित है और आपली ना का मतल्व नही और हाँ का मतलव हां होता है, जोर सच म होता है, तो इंद्रिया इस बात का बहुत जरद ममझ जाती हैं । वे जल समय जाता हैं कि आपकी नाका मतर व नहीं है और आपकी हाँ रा मतलव हां है । इसलिए मैं कहता हूँ कि अगर आप सकल्प करें तो उसे कमी न ता1 यदि तोडना ही हो तो भी सकप न करें क्यापि सरप करपे तोडना आपको इतना दुघर पर जाता है जिसका पाद हिसाव नहा है। थाप अपनी ही आराम अपन हा सामन दीन हीन हो जाते हैं। इमरिए छोटे सकल्प से गुम्द करें। (२०२१) मेरे पास लग बात हैं और कहते हैं कि पडे बदरन से क्या होगा, आत्मा बरलनी है। पड बदरन की हिम्मत नहीं है और आत्मा बदग्नी है। व साचते हैं कि यह दलील उनकी अपनी है पर यह दलील उनके पपडे दे रहे हैं । जो मूसा नहीं रह सकता, वह कहता है कि मनान स क्या होगा? भूसे मरन म क्या होगा? कुछ नही होगा । लेकिन मैं पूछना है कि उपवास स कुछ भी न होगा ता वया माजन करन स हो जायगा? नग्न सडे होन स नहीं होगा ता क्या पदे पहनने से हो जायगा? (२०) महावीर निश्चित नहीं करत थे रि पब माजन रेंगे। वे इस यात पा नियति पर छाड देत थे। बतुत पठिन प्रयाग था यह । एम्बी पर एमा प्रयोग रिमी यस व्यक्ति ने नहीं किया। महावीर महत पि भाजन में तब लूगा जब मरे सवल्प पी पटना घटे (जस-जय में रास्त पर निवल तब किसी बर गाडी व मामन काई या मी सडा होकर राता रहे वर वार रग हा, उम आदमी पी एप आस फूटो है। योर दूमरा औस स नौमू टपरत हा)। और वह भी तय जर यहा पाई मानन दन के लिए निमत्रण द, नहीं ता माग 43 जाऊंगा । महावीर गोवा म जात और मन ही मन यह तय कर जात दि बुद्ध विशेष समाग हाने पर ही भाजन सूगा धया नहीं। यदि वह सयाग पूरा नहीं होता तो य आनन्दित होरर वापस लौट मान। ये पह्त हि जय नियति की हा इच्दा नहा है ता हम क्या इच्चा परें! जय जागतिर शत्ति हा पाहती है rि आज में भोजन न ए सा बारा सत्म हो गई। गांव

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