Book Title: Mahavir Parichay aur Vani
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 278
________________ २८२ महावीर : परिचय और वाणी इससे वडा और क्या प्रमाण होगा ? ऐसा लगता है कि अनुभव मे हम कुछ नीखते ही नही । और जो अनुभव से नही सीखता, वह सयम मे नही जा सकता । सयम मे जाने का अर्थ ही है कि अनुभव से असयम गलत दीसा, दुस लगा | अनुभव ने बताया कि असयम पीडा है, नर्क है । ( २० - २१ ) फिर भीलगता है कि असमय न हो तो जीवन में कुछ नही । न स्वाद मे रम और न संगीत में रुचि । हमने जीवन को असयम का पर्याय बना लिया है और हमारी धारणा है कि अगर महत्त्वाकांक्षा न रही तो जीवन भी निस्सार हो गया। हमे लगता ही यह है कि पाप ही जीवन की विधि है, असयम ही जीवन का ढंग है । इसलिए हम मुन लेते है कि नयम की बात अच्छी है। लेकिन वह हमे छू नही पाती । इसका कारण है कि जब भी हमे संयम का खयाल उठता है तो लगता है, सयम निषेध है । सयम को निपेधात्मक मान लेने की वजह से हमारी तकलीफ है । मैं नही कहता कि यह छोटो, वह छोड़ो। मैं कहता हूँ, यह भी पाया जा सकता है, वह भी पाया जा सकता है। हाँ, इत पाने में कुछ छूट जायगा, निश्चित ही । लेकिन तव भीतर साली जगह नहीं छूटेगी, वहाँ एक नई तृप्ति होगी, एक नया भराव होगा हमारी सभी इन्द्रियाँ एक पैटर्न और व्यवस्था मे जीती है । जब आपको अतीन्द्रिय दृश्य दिखाई पडने शुरू हो जायेंगे तव आपको केवल अपनी आँखो से ही छुटकारा . नही मिलेगा । जिस दिन आँख से छुटकारा मिलता है, उस दिन कान के जगत् में भी भीतर की ध्वनि सुनाई पडने लगती है, कान से छुटकारा मिल जाता है । । (२२-२३) आपकी एक वृत्ति सयम की तरफ जाने लगे तो आपकी समस्त वृत्तियाँ उस ओर चल पडेगी । और ध्यान रहे, श्रेष्ठतर सदा शक्तिशाली होता है । अगर एक व्यक्ति घर मे ठीक हो जाय तो वह उस पूरे घर को ठीक कर सकता है । प्रकाश की एक किरण अनन्त गुना अधकार से भी शक्तिशाली हो सकती है, सयम का एक छोटा-सा सूत्र असयम की अनन्त जिन्दगियो को मिट्टी मे मिला देता है । हाँ विधायक दृष्टि होनी चाहिए । उस इन्द्रिय से काम शुरू करना चाहिए जो सबसे ज्यादा शक्तिशाली हो । अपने व्यक्तित्व की समक्ष होनी चाहिए ओर अधानुकरणसे वचने का सकल्प । उसी मार्ग से लौटने का यत्न होना चाहिए जिस मार्ग से हम बाहर गए है । नही मालूम आपको किस जगह द्वार मिलेगा । आप पहुँचने की फिक्र करे, नक यह जिद्द कि मैं प्रवेश करूंगा तो इसी दरवाजे से । हो सकता है, वह दरवाजा आपके लिए दीवाल सिद्ध हो, हो सकता है कि जीनेन्द्र के मार्ग से आप कही न पहुँचे । आप किसको माननेवाले है, यह उस दिन सिद्ध होगा जिस दिन आप पहुँचेगे ।

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