Book Title: Mahavir Parichay aur Vani
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 287
________________ महावीर परिचय और वाणी २९१ निया का पहले सवाल था कि सूय जलती हुई अग्नि ही है, उबलती हुई अग्नि लेकिन अब नानक कहत है कि सय अपने केंद्र पर बिलकुल शीतल है। जहा इतना प्रचड अग्नि हो वहा उसका सलुलित करने के लिए केंद्र पर गहन शीतलता होती. ही चाहिए, नही तो सतुलन टूट जायगा । ठीक ऐसी घटना तपरवी के जीवन में, घटती है। उसके चारा ओर ऊजा उत्तप्त हो जाती है लेकिन उस उत्तप्त ऊर्जा को सतुलित करने के लिए केन्द्र बिरुकुल गीतल हो जाता है। इसलिए तप से भरे हुए व्यक्ति से ज्यादा शीतलता का विन्दु इस जंगल में दूसरा नहीं है । ( ८-१२) तपस्वी वा ताप बाह्य नही हाता । वैसा ताप शरीर के आस-पास आग की यगीठी जला लेने से पदा नहा होगा । यह ताप आन्तरिक है । इसलिए महावीर ने यह निषेध किया है कि तपस्वी अपने चारो ओर आग न जलाए धूनी न रमाए । धूनी स मिला हुआ ताप बाह्य होता है उससे बातरिय शोतलता पैदा न होगी। ध्यान रह विशीतलता आतरिक तभी होगी जब ताप भी आवरिष होगा । यदि ताप वाह्य होगा तो शीतलता भी बाह्य होगी। यदि अन्तर की यात्रा करनी है तो बाहर के स्टीट्यूट नहा सोजने चाहिए-वे धोखे के है सतरना है । ( १३१५ ) आम तौर से हम जिन्हें तपस्वी कहत ह व एसे लोग हैं जा - अपन for शरीर का ही सतान में लगे है । भौतिक शरीर से कुछ लना-देना नही है । इस शरीर के भीतर छिपा हुआ जो दूसरा शरीर है- ऊर्जा-शरीर या एनर्जी वाडीउसके ऊपर ही काम करना है। योग म दिन चक्रा की बात की गइ है, वचन इस शरीर में कही भी नहीं हैं। व ऊर्जा शरीर के चन हैं। यही कारण है कि गल्यचिकित्सा जब इम गरीर का वाटत हैं तब उन्ह य चत्र यही नहीं मिलते। जिन्हें हम चक्र वहत ह व ऊर्जा शरीर के बिंदु हैं यद्यपि इन विदुजा के अनुरूप, इनसे वारिस्पॉड वरन वाल स्थान इस शरीर में अवश्य है रविन य स्थान चक्र नहीं हैं । हमारे शरीर के भीतर छिपा हुआ भर इसके बाहर इसे चारा जार घेरे हुए जा आभा मंडल है, वही हमारा वास्तविक शरीर है हमारा तप शरीर 1 --- ( १६ २१ ) इस भूमि पर हिदुओं ने प्राण ऊर्जा के सम्बध में सवाधिक गहर अनुभव किए थे इसलिए जहाने मवाधिक तीव्रता मे शरीर को नष्ट करने के लिए आग वा इतजाम किया गाठने का नहीं । यदि गरीब गाड़ा गया तो उस गल्ने, टूटन जोर मिट्टी में मिलने म छह महीन लग जाएंगे। उन छह महीना तक आत्मा का भटकाव हो सकता है । तकार जला देन वा प्रयोग उन्होंने सिर्फ इसलिए किया fr मी क्षण आत्मा का पता पर जाए कि शरीर नष्ट हो गया है जन तक यह अनुभव में न आए कि म मर गया हूँ तब तक नए व्यक्ति मर गया है । जीवन की खोज शुर I हा हाती । मैं मर गया हूँ--यह अनुभव कर लेने पर आत्मा ए जीवन की साज म निवर पडती है ।

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