Book Title: Mahavir Parichay aur Vani
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 270
________________ २७२ महावीर : परिचय और वाणी हम मर जायँगे । जो लोग ध्यान मे गहरे उतरते हैं, वे कहते हैं कि ऐसा लगता है. कही मर न जायँ । डर इसलिए लगता है कि जैसे-जैसे व्यान गहरा होता है, वैसेवैसे मन शून्य होता जाता है । जव मन शून्य होता है तब ऐसा महसूस होता है कि हम मर रहे हैं । ( १७ ) तो सयम मे निषेध का भाव नही है । जब दोनो अतियाँ साथ खडी हो जाती है तब दोनो एक-दूसरे को काट देती है और आदमी मुक्त हो जाता है । चूँकि लोभ और त्याग दोनो सम्भव हो जाता है, इसलिए आदमी न तो त्यागी होता है और न लोभी । अकेला लोभ उतना ही बेचैन करता है जितना त्याग, क्योंकि त्याग उलटा खडा हुआ लोभ है । (१८) काम-वासना मे मन उतना ही वेचैन होता है जितना ब्रह्मचर्य मे; क्योकि ब्रह्मचर्य है क्या ? वह शीर्पासन करता हुआ काम है । वास्तविक ब्रह्मचर्य तो उस दिन उपलब्ध होता है जिस दिन ब्रह्मचर्य का पता भी नही रह जाता । वास्तविक त्याग तो उस दिन उपलब्ध होता है जिस दिन त्याग का बोध भी नही रह जाता । बोध कैसे रहेगा ? जिसके मन मे लोभ ही न रहा, उसे त्याग का पता कैसे रहेगा ? जब तक आपको पता है कि मै त्यागी हूँ तब तक जानना कि आपके भीतर लोभ मजबूती से खडा है । जव तक आप खड़ाऊँ बजाकर या चोटी - वोटी बॉवकर घोषणा करते फिरते है कि मैं ब्रह्मचारी हूँ, तब तक आप इसकी ही घोषणा करते है कि आप खतरनाक आदमी है । खड़ाऊँ वगैरह की आवाज सुनकर लोगो को सचेत हो जाना चाहिए । ब्रह्मचर्य का दावा काम-वासना का ही रूप है | हम सम को तव उपलब्ध होते है जब न काम रहता है और न ब्रह्मचर्य, न लोभ और न त्याग, न यह अति पकडती है और न वह अति- - जब आदमी अनति मे, मौन और शान्ति मे थिर हो जाता है, जब दोनो विन्दु समान हो जाते है और जब एक-दूसरे की शक्ति एक-दूसरे को काटकर शून्य कर देती है । (१९) इसलिए सयम सेतु है । इसके ही माध्यम से कोई व्यक्ति परम गति को उपलब्ध होता है । इसलिए सयम को मैने श्वास कहा । आप श्वास लेने मे भी असयमी होते है | चाहे तो आप ज्यादा श्वास लेते हैं या कम श्वास लेते है । पुरुष ज्यादा श्वास लेने से पीडित है, स्त्रियाँ कम श्वास लेती है । जो आक्रामक है वे अधिक श्वास लेते हैं, जो सुरक्षा के भाव मे पड़े है वे कम श्वास लेते है । कम लोग है जिन्होने सच मे ही सयमित श्वास लिया हो। हमारी सांस भी तनाव के साथ चलती है । कामवासना मे वह तेज हो जाती है, इसलिए पसीना आ जाता है, शरीर थक जाता है । ब्रह्मचर्य साधने मे कम श्वास लेना पडता है । असल मे जो ब्रह्मचारी है वह एक अर्थ मे सब मामलो मे कजूस है । वह वीर्य-शक्ति के मामले मे ही नही, श्वास के मामले मे भी कजूस होता है, सब चीजो को भीतर रोक

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