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९० . महावीर ः परिचय और वाणी देगे : अमूर्छा । असाधुता क्या है ? वे कहेंगे : मूर्छा । उनकी सारी साधना का मूत्र है विवेक-कोई कैसे जागे, कैसे होश से भरा हुआ हो। ____ महावीर का पीरुप काम, क्रोध, लोम बादि से लड़ने मे न था। ये तो लक्षण है सिर्फ । इनसे कोई पागल ही लडेगा । मूछा है मूल वस्तु । काम, क्रोध, लोभ इससे ही पैदा होते हैं । मूर्छा टूटेगी तो वे आप ही विदा हो जायेंगे। अगर मूर्छा से बचते हुए व्रत लेकर इन्हे खत्म करने की कोगिरा की गई तो ये कभी खत्म न होगे, क्योकि मुर्छा भीतर जारी है। वह नए-नए त्यो मे इन्हें पैदा करती रहेगी। एक कोने से न निकलकर दूसरे दरवाजे से ये फूट पड़ेगे। महावीर तो वहुत स्पष्ट है कि साधना है अमूर्छा, संघर्ष यानी मूछी, सकल्प यानी जागरण ।।
आचाराग के एक वाक्य का अर्थ है कि 'तू वाह्य शत्रुओ से क्यो लडता है, अपनी आत्मा के शत्रुओ से ही लड़।' मै सूत्रो की फिक्र नहीं करता, क्योकि जो लोग उन्हे सगृहीत करते है वे कोई बहुत समझदार लोग नहीं होते। इसलिए उनसे तालमेल विठाने का सवाल पैदा नहीं होता। यदि वैठ जाय तो यह आकस्मिक वात होगी। न वैठे तो मुझे इसकी परवा नहीं। 'आन्तरिक शत्रुओ से लड' मे कही-न कही बुनियादी मूल हो गई है, क्योकि आन्तरिक शत्रु सिर्फ मूर्छा है। महावीर वार-वार यही कहते है। शत्र एक ही है और मित्र भी एक । जागरण मित्र है और मर्छा शत्र । इसलिए सुनने वाले ने कही-न-कही भूल कर दी है। 'आन्तरिक शत्रु' से लडना है, न कि 'शत्रुओ' से । जो बहुत शत्रुओ से लड रहा है, वह बुनियादी भूल कर रहा है, क्योकि मजे की बात तो यह है कि अगर काम चला जाय तो लोभ स्वत चला जाता है, कोघ चला जाता है, मोह चला जाता है। यानी वे चार जो तुम्हे दिखाई पड़ रहे है-काम, क्रोध, लोम और मोह-संयुक्त है और उन सवका जो संयुक्त तना है नीचे, वह मूर्छा है । वहाँ से शाखाएँ निकलती रहती है। गहराई मे उतरने वाले कहेगे 'मूर्छा से लड़ना है । और लडना क्या है, जागना है । जागा हुआ आदमी कभी लोभी नही पाया गया और सोया हुआ आदमी कभी अलोभी नहीं हुआ, अकामी नही हुआ । और, याद रहे, व्रत से कभी कुछ नही मिटता, क्योकि व्रत शाखाओ से लडाई है। महावीर और कृष्ण मुक्त हुए होगे तो दमन से नही, जागरण से । फ्रॉयड के शोधो से यह बात पहली बार स्पष्ट हुई है । इस नियम को उसने पहली बार वैज्ञानिक ढग से कहा है। इसलिए अब जो लोग महावीर को समझने के लिए फ्रॉयड के पूर्व की भाषा का उपयोग करेगे वे महावीर को आज के युग के लिए उपयोगी वनने न देगे। यह निश्चित है कि महावीर की मुक्ति जव भी घटी होगी, वह दमन से घटी न होगी। दमन से मूर्छा पर विजय पाना एक वैज्ञानिक असम्भावना है। यानी--अगर कोई कहे कि दमन से महावीर उपलब्ध हुए है तो फिर महावीर उपलब्ध न हुए होगे और अगर वे उपलव्ध हुए तो उन्होने दमन न