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महावीर परिचय और वाणी रिया होगा । मैं मानता हूँ कि वे उपलब्ध हुए क्यापि जसी शाति, जैसा आन द और जैसी ज्योति उनके "यक्ति म आई वैसी दमित व्यक्ति को आ ही नहीं सकती। दमित व्यक्ति के चेहरे पर, मा पर सब ओर तनाव ही तनाव होता है। सिफ विमुक्त आदमी के मन म वसी शान्ति हो सकती है जसी महावीर के मन मे है ।
प्रश्न किए जात हैं कि जिसे मैं सामायिक या आत्म स्थिति रहना हूँ, क्या वह चीनरागता ही नही है ? आत्म स्थिति में होनेवाले लोग क्या जोवन यवहार में आकर अपनी आत्म स्थिति खो नही देते ? मरा उत्तर है-~-नहीं, व इसे नहीं खोले । आप चाहे जागे हो या सोए, काम कर रहे हों या शात बैठे हा, आपकी मास चलती ही रहती है, क्याकि वह जीवन की स्थिति है। ऐसी ही चेतना की स्थिति है। एक बार वह हमारे खयाल मे आ जाय तो फिर कभी मिटती नही। यानी जीवन-व्यवहार म उसका "यान नहीं रखना पडता कि वह बनी रहे- वह हमशा बनी ही रहती है। धनपति को चौनीस घटे यह याद रखना नहीं पड़ता कि वह घनपति है। लेकिन धनपति होने की वह स्थिति बनी रहती है चौवीस घटे । हमारी स्थितिया हमारे साय की चलती हैं । एक पल में हजारवें हिस्से में भी अगर हम आत्म स्थिति का अनुभव हुआ है तो वह अनुभव वरावर बना रहेगा, क्योकि हमारे पास पल क हजारव हिम्से से बड़ा कोइ' समय होता ही नहीं।
सामायिक को मैं माग कहता हूँ वीतरागता को मजिल । सामायिक द्वार है वीतरागता उपलब्धि । साधन और साध्य अतत अलग अलग नहीं हैं। साधन ही विकमित होते होत साध्य हो जाता है। वीतरागता मे परम उपलब्धि होगी उसकी जिसे सामायिक म धार धीरे उपर किया जाता है। सामायिक म पूरी तरह स्थिर हो जाना वीतरागता में प्रवेश करना है।
कृष्ण न जिस स्थिर या स्थितप्रन रहा है वह वही है जा वीतराग है। दाना शब्द बहुमुल्य है । वीतराग वह है जो सर द्वद्वा के पार चला गया है, जो दा के पार चला गया है जो एक मही पहुच गया है। अब ध्यान रहे कि स्थिर या स्थितप्रन वह है जिमनी प्रना ठहर गई है, जिसकी प्रज्ञा पती रहीं । प्रा उसकी ही बापती है जो दुद म जीता है-दो के बीच जीता है। जहाँ द्वन्द्व है वहा कम्पन है । महावीर ने द्वद्व के निपेच पर जोर दिया है, इसलिए 'वीतराग शद का उपयोग किया है, कृष्ण न द्वद्व की बात ही नही की स्थिरता पर जोर दिया । एक ही चीज का दो तरफ से पकड़न की कोशिश की है दोना ने । कृष्ण पकड रहे ह दीए की स्थिरता स, महावीर पकड रहे ह हद निषेध से । लेकिन दाद का निषेध हा ता प्रना स्थिर हा जाती है प्रना स्थिर हो जाय तो हद का निपध हो जाता है। ये दानो एक हो जय रखते है।