Book Title: Mahavir Parichay aur Vani
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 234
________________ २३६ महावीर : परिचय और वाणी लोक मे उत्तम है', वह भले ही इसे यो ही दुहराता रहा हो, फिर भी उसे निराश होना नही पड़ता। यदि वह तोते की नाई इसे रटता भी है तो उसके चित्त पर निशान बनते है, ग्रन्ज निर्मित होते है जो किसी भी प्रकाश के क्षण मे सक्रिय हो सकते है। जिसने निरन्तर कहा है कि अरिहत लोक मे उत्तम है, उसने अपने भीतर एक धारा प्रवाहित की है। जब वह अरिहत होने के विपरीत जाने लगेगा तब उसके भीतर कोई उससे कहेगा कि तुम जो कर रहे हो वह उत्तम नही है, लोक मे श्रेष्ठ नही है। सिर्फ पुनरुक्ति भी हमारे चित्त मे रेखाएँ छोड जाती है, ऐसी रेखाएं जो किसी भी क्षण सक्रिय हो सकती है। जानकर, समझकर कहा गया लाभप्रद तो होता ही है, न समझकर कहा हुआ सूत्र भी लाभदायी होता है। ( १४ ) महावीर ने जिस परम्परा-धारा का उपयोग किया है उसमे श्रेष्ठतम स्थान मनुष्य की शुद्ध आत्मा को मिला है । उन्होने मनुष्य की ही शुद्ध आत्मा को परमात्मा माना है। इसलिए उनके हिसाब से इस जगत् मे जितने लोग हैं, उतने भगवान् हो सकते है, जितनी चेतनाएं है, वे सभी भगवान् हो सकती है। दुनिया के सारे धर्मों मे भगवान् की जो धारणा है वह ऐरिस्टोकैटिक है-वह सिर्फ एक सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान भगवान की धारणा है। महावीर की धारणा डेमोक्रेटिक है-प्रत्येक व्यक्ति स्वभाव से भगवान् है। वह जाने-न जाने, पाये-न पाये, फिर भी वह भगवान् है। और कित्ती-न-किसी दिन वह, जो उसमे छिपा है, प्रकट होकर रहेगा, सम्भावना सत्य वनकर रहेगी। अत कहने की जरूरत नहीं है कि महावीर अनन्त भगवत्ताओ को मानते हैं। जिस दिन सारा जगत् अरिहत तक पहुँच जाय, उस दिन जगत् मे अनन्त भगवान् होगे। महावीर का मतलव भगवान् से है-उससे है जिसने अपने स्वभाव को पा लिया। स्वभाव भगवान् है।। भगवान् की यह धारणा अनूठी है। महावीर के अनुसार न कोई जगत् को बनानेवाला है और न जगत् को चलानेवाला। वे कहते है कि कोई वनानेवाला नहीं है-वनाने की धारणा ही बचकानी है। बचकानी इसलिए है कि इसमे कुछ हल नहीं होता। हम कहते है कि जगत् को भगवान ने बनाया। फिर मवाल खड़ा हो जाता है कि भगवान् को किसने बनाया ? हम जवाब देते है कि भगवान् ने जगत् को बनाया, लेकिन भगवान् को किसी ने नही बनाया । महावीर कहते हैं कि जब यह मानना ही पड़ता है कि मनवान् को किसी ने नही बनाया तो फिर सारे जगत् को ही अनवना-अनक्रिएटेड-मानने मे कौन-सी अड़चन है ? अडचन एकही थी मन को कि विना बनाए कोई चीज कैसे बनेगी? फिर नास्तिक के पास जो उत्तर है वह तथाकथित ईश्वरवादी के पास नहीं है। नास्तिक पूछता है कि तुम्हारे भगवान् ने सृष्टि क्यो की ? ईश्वरवादी के लिए यह वडा कठिन प्रश्न है। उसे मानना पड़ता है कि ईश्वर मे जगत् को बनाने की वासना उठी। जब भगवान् तक मे वासना

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