Book Title: Mahavir Parichay aur Vani
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 237
________________ महावीर परिचय और वाणी २३९ इतना वेहार किया जाय कि आपका अपना काई पता न रह जाय तो आपसे पिसी भी भापा म बात की जा मफ्ती है और आप उस समय लेंग। (१७) चेर वनानिक डॉ० रा डेक का कहना है कि हम महासागर म निकले हुए छोटे छोट द्वीपा की माति हैं । पर स अलग-अलग, वितु जमीन पर अपनी अतर गहराच्या म, परम्पर जुड़े हुए,। ऊपर हमारी भाषाएं पृथक् पृथक है। लेकिन दमारे अचेतनकी भापा एक है । गहरे उतर जाये तो पशुआ और मनुष्यो की भी भाषा एक है अचेतन की गहराइया में हम पौवा मे भी जुटे हुए हैं और हमारा अचेनन मगुप्या को ही मापा नहीं समाता, पशु-पक्षिया और पायो पी वारी भी मुनता समरता है। जत मानवारे वीम वपों म विनान बताएगा यि महावार ने निशद विचार-सचरण का जा प्रयोग किया था वह पुराण कथा मात्र नहीं है। इस पर काम तजी से चल रहा है और स्पष्ट हाती जा रही है बहत-सी अंधेरी गलिया जा पहले साफ न थी। इसका अर्थ यह भी हुआ कि अगर हम क्मिी व्यक्ति को दुमरी भाषा मिखानी हो ता उसके चेतन का नहा, प्रत्युत अचेतन का सहारा उपयुक्त हागा । राज डेय कहता है कि चेतन म्प से मिसान म जाप श्रम का दुरपयाग करत हैं व्यथ की परगानिया माल रेते है। यह टोक रहता है कि चेतन स्पस जा मापा जाप दा मार मसीगे, उसे ही बलारिया ये डा०ॉरेजो आपरा सम्माहित हालत म वीस दिन में सिखा सक्त हैं। उनका कहना है कि जब कोई व्यक्ति सचेतन रूप म सुनता है तब उसका ऊपरी मन सुनता है इसलिए च कहते है कि परी मन का ता लगा दा मगीत सुनने में और भीतरी मन के द्वार से सुना यह जा सुनना चाहिए। इस तरह दो साल का कोम वीस दिन म ही पूरा किया जा सकता है। बात क्या है ? वान बुर इतना ही है कि नीचे गहरे म हमारी बहुत सारी क्षमताए छिपी पड़ी हैं। आप अपन घर म यहाँ तक आ गए । अगर आप पैदर चल कर आए हा, तो क्या आप बता मरत हैं कि राम्त म रितन घर और खम्भे मिल? आप रहेंगे क्या मैं कोई पागल हूँ जा इसकी गिनती करता? लेविन आपका बहाा परक पूछा जाय ता जाप इनको सग्या बता सरत हैं। जब आप मा रह थे इधर तब जापमा परी मन आन म रगा था और नाचे का मन सव-वृछ अफ्ति परता जा रहा था। पानी के ऊपर निकला हुआ जा द्वाप है, उसे इसवा कुछ भा पता नहीं है दिन नीचे जो जुडी हुइ भूमि का विस्तार है उस सर पता है। (१८) चूकि महावीर वारे नही, इमाए उनका धम बहुत व्यापर नहीं हो पापा, घटत गेगा तर नहा पहुच पाया। परि वे बारत तो सवा समझ म आना। उनके न बालन कारण येवल व ही समप पाए जा उनन गहरे जान पो तयार थे। इसलिए महावीर प वक्त जा श्रेष्ठतम राग ये केवल प ही उनसरा सुन पाएव श्रेष्ठनम लाग चाह पौधा म हा या पशु-पलिया में, या मनुष्या म। महावीर का

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