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महावीर : परिचय और वाणी ___यह भी न भूले कि जीवन-व्यवहार हमसे निकलता है। हम जैसे हैं वैमा ही हो जाता है। हम मूच्छित हैं तो हमारा जीवन-व्यवहार मुच्छित होता है। जो हम करते है, उसमे मूर्छा होती है। अगर हम ज्ञान में पहुंच गए तो हमारा जीवनव्यवहार ज्ञान से भर जाता है। अगर मूल स्रोत अमृत से भर गया तो फिर जो लहरें छलकेगी, उनमे अमृत भरा होगा। ___मैने ऊपर जिस अन्तज्योति की बात कही, वह ऐसी ज्योति नही जो कनी बुझती है। वह अभी भी जल रही है। वह कभी वुझी नही, क्योकि वह हमारी चेतना का अन्तिम हिस्सा है- वह हमारा स्वभाव है । पीठ फेरेने, लौटकर देखेंगे तो उसे जली हुई पायेंगे।