Book Title: Mahavir Parichay aur Vani
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 222
________________ २२२ महावीर : परिचय और वाणी जापान के एक पर्वत-शिखर पर पच्चीस हजार वर्ष पुरानी मूर्तियों का एक समूह है । ये मूर्तियाँ 'दोवु' कहलाती है । अब तक उन मूर्तियों को समझना सम्भव नही हुआ था, किन्तु जिस दिन हमारे यात्री अंतरिक्ष में गए, उनी दिन 'दो' मूर्तियों का रहस्य खुल गया । अतरिक्ष मे यात्रियों ने जिन वस्तुओं का उपयोग किया, वे ही इन मूर्तियों के ऊपर है । पत्थर में खुदे है । अव मानना ही पडता है कि पच्चीस हजार साल पहले आदमी ने अतरिक्ष की यात्रा की थी और अतरिक्ष या किन्ही ओर ग्रहो से आदमी जमीन पर श्राता रहा है। आदमी जो जानता है वह पहली वार जान रहा है, ऐसी भूल मे पडने का कारण नही है। आदमी बहुत बार जान लेता है और भूल जाता है । बहुत बार गिवर छू लिये गए है और खो गए है । महावीर एक बहुत बडी संस्कृति के अन्तिम व्यक्ति है । उन संस्कृति का विस्तार कम से कम दस लाख वर्प है । महावीर जैन-विचार और परम्परा के अन्तिम तीर्थकर हैं— चौवीसवे । आज इन नूत्रो को समझना इसलिए कठिन है कि वह पूरा का पूरा वातावरण जिसमे ये सूत्र सार्थक थे, आज कही भी नही है । हो सकता है कि तीसरे महायुद्ध के वाद जब सारी सभ्यता विखर जायगी, लोगो के पास हवाई जहाज मे उडने की याददाश्त भर रह जायगी । हवाई जहाज तो विखर जायंगे, याददाश्त रह जायगी । यह याददास्त हजारो साल तक चलेगी और बच्चे हँसेंगे, कहेंगे कि कहाँ है हवाई जहाज ? ऐसा मालूम होता है कि ये कहानियां है, पौराणिक कथाएँ हैं, मिथ है । (३) चौवीस जैन तीर्थकरो की ऊँचाई, शरीर की ऊँचाई आज बहुत काल्पनिक मालूम पडती है । केवल महावीर की ऊंचाई सामान्य आदमी की ऊँचाई है । शेष तेईसो तीर्थंकर वहुत ऊँचे थे । इतनी ऊंचाई हो नही सकती । अव तक लोग ऐसा ही सोचते थे । अव वैज्ञानिक कहते हैं कि जैसे-जैसे जमीन सिकुड़ती गई है वैसे-वैसे जमीन का गुरुत्वाकर्षण भारी होता गया है और जिस मात्रा मे गुरुत्वाकर्षण मारी होता है, उसी मात्रा मे लोगो की ऊंचाई कम होती जाती है । छिपकली आज से दस लाख पहले हाथी से वडा जानवर थी । वह अकेली बची, उसकी जाति के अन्य सारे जानवर खो गए । अगर जमीन का गुरुत्वाकर्षण और सघन होता गया तो आदमी और छोटा होता चला जायगा । अगर आदमी चाँद पर रहने लगे तो उसकी ऊँचाई चौगुनीहो जायगी, क्योकि चाँद पर चौगुना कम है गुरुत्वाकर्षण | नमोकार को जैन-परम्परा ने महामत्र कहा है । पृथ्वी पर दस-पांच हो ऐसे मंत्र हैं जो नमोकार की हैसियत के है । असल मे प्रत्येक धर्म के पास महामत्र अनिवार्य है, क्योकि इसके इर्दगिर्द ही सारी व्यवस्था, सारा भवन निर्मित होता है । ये महामंत्र करते क्या है ? इनका प्रयोजन क्या है ? आज ध्वनि-विज्ञान बहुत से नए तथ्यो के करीब पहुँच रहा है। उसमे एक तथ्य

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