Book Title: Mahavir Parichay aur Vani
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 230
________________ महावीर : परिचय और वाणी (६) महावीर अपने साधुओ से कहते है कि चौवीस घंटे मगल की कामना मे डूबे रहो - उठते-बैठते, साँस लेते-छोडते । स्वभावत मंगल की कामना शिखर से गुरू करनी चाहिए | इसलिए वे कहते है कि अरिहत मंगल हे । जिनके समस्त आन्तरिक रोग समाप्त हो गए, वे मंगल है। सिद्ध मंगल हैं, साव मगल है । जिन्होने जाना, उन्हे जैन-परम्परा मे केवली कहते है । जानने की दिशा मे वे उस जगह पहुँच जाते है जहाँ जाननेवाला भी नही रह जाता, जानी जानेवाली वस्तु भी नही रह जातीसिर्फ जानना रह जाता है, केवल ज्ञानमात्र रह जाता है। जो केवल ज्ञान को उपलब्ध हो गया और वहाँ पहुँच गया जहाँ ज्ञान मात्र रह गया है और जहाँ न कोई जाननेवाला वचा, न जानी जानेवाली वस्तु वची, उसे केवली कहते है ! जैन - परम्परा कहती है कि जिस चीज का भी स्रोत होता है, वह कभी न कभी चुक जाती है, चुक ही जायगी, कितना भी वडा स्रोत क्यो न हो । सूर्य भी चुक जायगा एक दिन । २३२ (७) लेकिन महावीर कहते है कि चेतना अनन्त है, यह कभी चुक नही सकती । यह स्रोतरहित है । इसमे जो प्रकाश है वह किसी मार्ग से नही आता । वह वस, है— 'इट जस्ट इज' । कही से आता नही, अन्यथा एक दिन वह भी चुक जायगा । सागर भी चम्मचो से उलीचकर सुखाए जा सकते है । एक चम्मच थोडा तो काम कर ही जाती है । महावीर कहते है कि चेतना स्त्रोतरहित है, इसलिए उन्होने ईश्वर को मानने से इनकार कर दिया, क्योकि अगर हम ईश्वर को मानते है तो ईश्वर स्रोत हो जाता है और हम सब उसी के सोत से जलनेवाले दीए हो जाते है जो कभी-न-कभी चूक जाएँगे । इसमे सन्देह नही कि महावीर ने आत्मा को जितनी प्रतिष्ठा दी, उतनी प्रतिष्ठा इस पृथ्वी पर किसी अन्य व्यक्ति ने कभी नही दी । उन्होने इतनी प्रतिष्ठा दी कि यह कहने मे सकोच न किया कि परमात्ना अलग नहीं, आत्मा ही परमात्मा है । इतका स्रोत अलग नहीं, यह ज्योति ही स्वय स्रोत है । भीतर जलनेवाला जो जीवन है, वह कही से शक्ति नही पाता । वह स्वयं ही शक्तिमान् है । वह न तो किसी के द्वारा निर्मित है ओर न किसी के द्वारा नष्ट हो सकता है । वह स्वय में समर्थ और सिद्ध है | जिस दिन ज्ञान उस सीमा पर पहुँचता है, जहाँ हम स्रोतरहित प्रकाश को उपलब्ध होते हैं, उसी दिन हम मूल को उपलब्ध होते है । जैन- परम्परा ऐसे ही व्यक्ति को केवली कहती है । ऐसा व्यक्ति कही भी पैदा हो सकता है । वह क्राइस्ट हो सकता है, वुद्ध, कृष्ण या लाओत्से हो सकता है । इसलिए इस सूत्र मे यह नही कहा गया कि महावीर मगलम् या कृष्ण मगलम् । कहा गया – 'केवलिपन्नत्तो धम्मो मगल ।' जो केवल ज्ञान को उपलब्ध हो गए, उनके द्वारा जो प्ररूपित धर्म है, वह मंगल है |

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