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महावीर : परिचय और वाणी अगर थोप लिया जाय । तो मैं कहता हूँ कि समाज को सम्यक् वासना सिखाओ, सम्यक् काम की शिक्षा दो। महावीर भी जिस ब्रह्मचर्य को उपलब्ध हए थे, वह जन्म-जन्मान्तरो की वासना की समझ का ही परिणाम था।
किसी चीज को समझने के लिए उससे गुजरना और उसे जीना आवश्यक है। ब्रह्मचर्य की साधना की प्रक्रिया का सूत्र यह है कि सेक्स के क्षण मे हम जागे हुए कैसे रहे । अगर आप दूसरे क्षणो मे जागे हुए होने का अभ्यास कर रहे हैं तो आप सेक्न के क्षण मे भी जागे हुए हो सकते है । ठीक यही वात मृत्यु के सम्बन्ध मे भी कही जा सकती है । मृत्यु का भय इतना ज्यादा है कि हम मृत्यु को जागे हुए भोग नहीं पाते, इसलिए मृत्यु से अपरिचित रह जाते है । एक दफा कोई मृत्यु मे जागे हुए गुजर जाय तो मृत्यु खत्म हो गई, आत्मा के अमर स्वरूप का ज्ञान हो गया और उसे पता लगा कि मरा तो कुछ भी नही, सिर्फ शरीर छूटा है। हम सेक्स से मूच्छित गुजरते है, इसलिए उससे अपरिचित रह जाते है । जो सेक्स से परिचित हो जाय, वह ब्रह्मचर्य को जान लेता है।
प्रकृति ने जिन्दगी के सभी कीमती अनुभवो को वेहोशी मे गुजरवाने का इन्तजाम किया है। यदि ऐसा न होता तो आप उनसे गुजरने से इनकार कर देते । सेक्स प्रकृति की गहरी जरूरत है। वह सन्तति उत्पादन की व्यवस्था है। प्रकृति नहीं चाहती कि आप उसमे गडबड करे । जिसे आप प्रेम आदि की सज्ञा देते है वह सब वेहोश होने की तरकीबे है, और कुछ नही । प्रेयसी के पास आपको पहले मूच्छित होना पड़ता है, उसे मच्छित करना पडता है। प्रेमक्रीडा से गुजरने के पहले सारा गोरख-धधा एकदूसरे को मच्छित करने का उपाय है।
मेरे कहने का तात्पर्य कुल इतना है कि यदि आप किसी भी क्रिया से मुक्त होना चाहते हो तो याद रखिए--मूच्छित हालत मे आप उससे कभी मुक्त नही हो सकते। - अगर महावीर स्त्रियो को छोडकर जगल चले गए है तो हमे लगता है कि हम भी स्त्रियो को छोडे और जगल चले जायें। हम महावीर की बुनियादी बात समझना भूल गए । वे जब जगल जा रहे है तो पीछे स्त्रियो की स्मृति नही है उनके मन मे । लेकिन आपका जगल जाना कुछ और होता है। वहाँ उनकी स्मृति आपको घेरे हुए होती है और आप समझते है कि आप वही काम कर रहे है जिसे महावीर ने किया था। आप भी जंगल में जाकर बैठ जायेंगे। मगर महावीर बैठेगे तो स्वयं खो जायेंगे । आप बैठेगे तो स्त्रियो मे खो जायेंगे । आप कहेगे कि यह तो महावीर ने भी किया था जो हम कर रहे है । हमारी कठिनाई यह है कि हमे ऊपर का रूप ही दिखाई पडता है। महावीर जंगल जाते दिखाई पडते है । उनके भीतर क्या घटी है, यह हमे दिखाई नही पडती । अगर वह दीख पड जाय तो बात कुछ और ही हो जाय ।