________________
महावीर : परिचय और वाणी
अन्त मे इस करुणा के महत्व पर गौर करे । मुक्ति के पहले सारी वामनाएँ समाप्त हो जाती है । वस्तुत मुक्ति होती ही उस चेतना की है जिसकी मारी वासनाएं समाप्त हो गई है । लेकिन, अगर सारी वामनाएँ समाप्त हो जाएँ तो अमुक्त स्थिति और मुक्त स्थिति के बीच सेतु क्या होगा ? वह आत्मा, जिसकी समस्त वासनाएँ समाप्त हो गई है, अपने को पहचानने में असमर्थ होगी, क्योंकि उसने अपने को वासना से ही जाना था । इसलिए जब सारी वासनाएँ समाप्त हो जाती है तब सिर्फ सेतु की तरह एक वासना शेष रह जाती है । उसी वामना को मैं करुणा कह रहा हूँ | तीर्थकर होना करुणा की वासना मे होता है
३८