________________
७२
महावीर परिचय और वाणी पाते । वस्तुत जा अस्तित्व है, समय भी वही है बाकी सब या ता हो चुका या अभी हुआ नहीं। जो है, उससे ही प्रवेश करना होगा।
महावीर इसरिए भी आत्मा का समय कहत ह मि समय के दशन होत ही जो उपर व हाता है वह आत्मा है । जव तुम अस्तित्व का ही अनुभव नहीं कर पाते तो तुम्हारे अस्तित्व का मतलब क्या है ? मारमा तो सबके भीतर है-सम्भावना की तरह, सत्य की तरह नहा । हम भी आत्मा हो सकते हैं। जब हम कहते है कि सबके भीतर भात्मा है तो इसका मतलब सिफ इतना ही है कि हम भी आत्मा हो सक्ते ह, अमी ह नहीं। हम उसी क्षण आत्मा हाँ जायेंगे जिस क्षण हम अस्तित्वमा दसने जानने, पहचानने म समय हो जायगे। इस दूसरी तरह भी समझा जा सकता है। अतीत और भविष्य मन के हिस्से .इ. वतमान आत्मा का हिस्सा है। मन हमेशा अतीत और भविष्य में रहता है--पोछे या मागे । यहा, इसी वक्त, अमी, अव--- एसी कोई चीज मन म नहीं होती। मन सग्रह है अतीत का और भविष्य को योजनामा फा। मन जीता है अतीत और भविष्य म । अतीत और भविष्य के बीच म एक अत्यत सूक्ष्म रेखा है जो दाना को तोडती है । यह वतमान है। यह रखा इतनी बारीक है कि इसके अनुभव के लिए हमारा अत्यत शात होना जरूरी है। जरा-सा कम्पन हुआ कि हम चूक जायगे । इसलिए जिस दिन हमारी चेतना अक्म्प होगी, उसी दिन समय के क्षण का एक छोटा-सा दशन भी हमे उपल ध होगा। वतमान का क्षण ही द्वार है अस्तित्व म प्रवेश या। ब्रह्म म प्रवेश कहें, सत्य या मोष म प्रवेश कहें यह वतमान के क्षण से ही सम्भव हाता है। ___ चूकि हम वतमान के क्षण म व्यस्त होते है. इसलिए म जात है। इसलिए सामायिक का अथ है अव्यस्त होना । जब हम कुछ भी करते या सोचत नही हात, तब समय को पकडना सम्भव होता है। जहा कुछ किया कि समय चूक जाता है । महावीर ने आत्मा को समय का पर्याय बहा है और उहाने यह नाम बडे गहरे प्रयाजन से दिया है। उनका कहना था कि यदि तुम समय का जान ला समय म खड हा जाओ, उसे देख लो तो तुम अपने को पहचान रोग । लेकिन समय का जानना ही मुश्किर है। सवस ज्यादा कठिन है वतमान म खडा होना, क्यापि हमारी पूरी आदत चाहे तो पीछे हाने की हानी है या आगे हाने की। हम चाह तो पतात म होत ह या भविष्य मे । ऐसा आदमा विरल होता है जो वतमान म हो । यदि ऐसा आदमी मिल पाय ता समझना कि वह सामायिक म था । जब हम कुछ भी कहते नहा हात, यहा तक दिन तो मन जपत होत ह जोर न अपनी सास देसत हुए तव सामायिक म होत ह । जिस मैं श्वास देखना कहता है वह सामायिक नहीं है । व्यय का यस्तताएँ छट जायें इसलिए मैं श्वास दखन लिए कहता हूँ। जब कम स कम एक ही व्यस्तता रह जाय तब कहूंगा कि इससे भी छलाग रगा जाय । यह एक