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महावीर : परिचय ज्ञौर वाणी
चाहता । इसलिए केवल ज्ञानी को जैसे ही शुद्धता उपलब्ध होती है, वह जानना छोड देता है— जानने की क्षमता मे ही रम जाता है । जानने की क्षमता ही इतनी आनन्दपूर्ण है कि वह क्यो जानने जाए किसी को ? अज्ञान जानने जाता है, ज्ञान ठहर जाता है । अज्ञान में जानने की जिज्ञासा होती है, किन्तु ज्ञान की क्षमता उपलव्ध होते ही ज्ञान ठहर जाता है अज्ञान भटकाता है, ज्ञान ठहरा देता है । जिस व्यक्ति को परिपूर्ण ज्ञान की क्षमता उपलब्ध हो जाती है वह तत्काल सभी दिशाएँ छोडकर परमात्मा मे लीन हो जाता है, सर्वव्यापक हो जाता है-बूंद सागर मे गिरकर सर्वव्यापी हो जाती है । दूसरी भी सम्भावना है कि वह एक जीवन के लिए लौट आए और अपनी क्षमता की खबर दे । इसे ही मै करुणा कहता हूँ । इसी करुणा से प्रेरित हो ज्ञानी अभिव्यक्ति की पूर्णता हासिल करने की कोशिश करता है, उपाय करता है दूसरे से कहने का ।