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महावीर ः परिचय और वाणी
हो जाता है और वीरे-धीरे दूसरे के हाय मे जीने लगता है। मैंने भी इवर मम्मोहन पर कई प्रयोग किए। इसका सबसे महत्त्वपूर्ण कारण यह था कि सम्मोहित व्यक्ति मे कोई वात आसानी से प्रवेश कराई जा सकती है। लेकिन में भी इसी नतीजे पर पहुंचा कि जिस व्यक्ति पर सम्मोहन के प्रयोग होते हैं और जिसमे सम्मोहन की अवस्था मे कोई वात प्रवेश कराई जाती है, वह व्यक्ति ऐने जीने लगता है जैसे उनकी कोई स्वतत्र सत्ता नहीं । रामकृष्ण ने विवेकानन्द को जो पहला सन्देन दिया था, वह सम्मोहन की विधि से दिया था। रामकृष्ण के स्पर्गमात्र ने विवेकानन्द को ममावि का अनुभव हो गया था। मरने के तीन दिन पहले भी उन्हे ऐना ही अनुभव हुआ था। वह अनुभव भी विवेकानन्द का अपना न था। उसमे विवेकानन्द की अपनी कोई उपलब्धि न थी। चूंकि वे रामकृष्ण से बंधे थे, इसलिए बहुत चिन्तित, दुसी और परेशान रहते। ___ अब प्रश्न उठता है कि अगर महावीर ने सम्मोहन की प्रक्रिया का उपयोग नहीं किया तो रामकृष्ण ने क्यो किया ? इसका नवने वडा कारण यह है कि रामकृष्ण वाणी मे असमर्थ थे और वाणी के लिए विवेकानन्द को साधन की तरह उपयोग करना जरूरी था। नही तो रामकृष्ण ने जो जाना था, वह खो जाता। इसलिए मैं कहता हूँ कि विवेकानन्द सिर्फ रामकृष्ण के ध्वनि-विस्तारक यत्र है, इससे ज्यादा नहीं। महावीर को ऐसी कोई कठिनाई न थी। उनके पाम रामकृष्ण के अनुभव थे और विवेकानन्द की सामर्थ्य भी। इसलिए दो व्यक्तियों की जरूरत न पडी। एक ही व्यक्ति काफी था। इसी प्रकार गुरजिएफ ने ऑस्पेस्की का उपयोग किया थ। गुरजिएफ के पास वाणी न थी, ऑस्पेस्की के पास वाणी थी, बुद्धि थी, तर्क था। महावीर के पास गुरजिएफ की सावना थी और ऑस्पेस्की की वाणी, बुद्धि और तर्क भी। उनके पास भी सम्मोहन का नाघन था, लेकिन उन्होंने देखा कि वह नावन व्यक्ति को नुकसान पहुंचाता है । वे ध्यान को उपलब्ध थे, इसलिए मौन मे ही सवाद सप्रेपित कर लेना उनके लिए सहज सुगम था। उनके लिए गव्दो के उपयोग की आवश्यकता ही न थी। वस्तुत. शब्द सवसे असमर्थ चीज है। मौन मे जो कहा जाय, वह पहुँच जाता है, जो कहा ही नही जा सकता, बल्कि केवल समझा जा सकता है, वह भी पहुँच जाता है। ___इसलिए महावीर के भक्तो को श्रावक कहते है-श्रावक यानी ठीक से सुननेवाला। सुनते हम सभी है और इसलिए, इस अर्थ मे, हम सभी श्रावक हैं। किन्तु हम उस अर्थ मे श्रावक नही हैं जिस अर्थ मे महावीर के सच्चे भक्त इसका प्रयोग करते हैं। श्रावक वह है जो ध्यान की स्थिति मे बैठकर सुन सके-उस स्थिति मे जहां उसके मन में कोई विचार न हो, शब्द न हो, कुछ भी न हो। मौन मे बैठकर जो सुन सके वही सच्चा श्रावक है और ऐसे व्यक्ति द्वारा होनेवाली सुनने की क्रिया को ही सम्यक्