________________
महावीर परिचय और वाणी और महावीर के साथ होना वडी हिम्मत की बात है। पीछे होना सरल है। इहा कारणा से महावीर के आसपास अनुयायिया को बड़ी सत्या उपस्थित न हो मकी। छोटी सस्या उपस्थित हुई और वह निरतर छोटी होती चली गई। अच उस शासा म काई प्राण नहीं रहा । मैं किसी का अनुयायी नहा, फिर मो चाहता हू दि इसम नए अपुर लगें। पूजा से वक्ष सूखते हैं । मैं चाहता हूँ कि इस वृक्ष का पूजा के बदले पानी दिया जाय, राग महावीर की स्यात-दृष्टि को समझें और इसे ठीक-ठीप प्रकट करें ताकि भविष्य म भी महावीर के वृक्ष के नीचे बहुत से लागा का छाया मिल सके।
मेरा सयार है कि स्यात् की भापा रोज राज महत्त्वपूर्ण होती चली जायगी। विमान ने उसे स्वीकार कर लिया है । माइस्टीन की स्वीकृति बहुत अद्भुत है। अब तक समया जाता था कि जो अतिम अणु है, परमाणु है वह एक विदु है जिसम रम्बाई चौडाई नहीं। लेकिन प्रयागा से अब पता चला है कि कभी तो वह अणु विदु की तरह व्यवहार करता है और ममी रहर की तरह । इसलिए ऐसा लगता है कि वह स्यात् अणु है, स्यात लहर है। उसके लिए एक नया शद गढ़ना पहा-'क्वाण्टा'। यह उसके लिए प्रयुक्त होता है जो दोना है-विदु भी और लहर भी।
पुछ लोगामा मत है कि सत्य की यात्रा अणुव्रत से प्रारम्भ होती है और महाव्रत म समाप्त हो जाती है। वे कहते हैं कि आज अगर देवल मुछी टूटना ही मब कुछ हो गया तो अगुव्रत और महानत का भेद मिट जायगा, कोई प्रम नहीं रगा और चरित्र का महत्त्व दान ले लेगा। __इस सम्बध मे दो तीन बातें राममनी चाहिए। एक तो यह कि अगुव्रत से
१ जन नास्ता या एक महत्त्वपूण विधान है-चारिनधम्मो अति चारिन ही पम है। चारित यया है ? इसका उत्तर यह कहकर दिया गया है
___"असहाओ विणिवित्ती सुहे पविती य जाण चारित्र ।"
अर्थान- अगुभ कर्मों से निवस होना तथा गुम मा मे प्रवत होना चरित्र कहलाता है।
२ इनको भी सख्या पाच है-स्यूल प्राणातिपातविरमण, स्यूल मपायादविरमण, स्थूल अदनादानयिरमण, स्वदारसतोप, इच्छापरिमाण । थावफ पो मागिर परिम सापना हो अगलत पहलाती है। इसस भय है स्यूल, छोटा अथवा आगिर त । मणप्रती उपातर सम्पर चारित्र या पारन रो मे असमय होता है। यह मोटे तौर परो चारिता पालन करता है। जैन माचार लेसन डॉमोहनलाल मेहता