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महावीर : परिचय और वाणी
होता है समाज मे | मेरी दृष्टि मे 'वेसिक मॉरैलिटि' जैसी कोई चीज नही । सत्य भी अनुभूति का दर्शन का हिस्सा है, चरित्र का नही । यदि महावीर भी मुहम्मद की जगह होते तो, मैं मानता हूँ, वे विवाह करते । उस स्थिति मे वही नैतिक तथ्य हो जाता | मुहम्मद के लिए ब्रह्मचर्य की कल्पना बहुत मुश्किल थी; अगर वे ब्रह्मचर्य की बात करते तो अरव मुल्क सदा के लिए नष्ट हो जाता। वे प्रत्येक व्यक्ति को चार-चार विवाह करने की सलाह देते है और उदाहरण पेश करने के लिए स्वयं नी विवाह करते है । मैं जिस बात पर वल दे रहा हूँ वह यह है कि मैं चरिन को केन्द्र
ही मानता, परिधि मानता हूँ । दर्शन को केन्द्र मानता हूँ । दर्शन ज्ञान ही चरित्र है । चरित्र साधने से ज्ञान नही होता । किसी के आचरण का हिसाव ही मत रखो - यह सम्यक् दृष्टि नही है | दर्शन कसे उपलब्ध हो, इसकी फिन करो । दर्शन का हमे तयाल नही रह गया, इसलिए हम चरित्र की फिक्र करते हैं । विचारणीय है दर्शन । और दर्शन, काल एव परिस्थिति से आवद्ध नही है । वह कालातीत है, क्षेत्रातीत है । जव भी तुम्हे दर्शन होगा तो वही होगा जो किसी दूसरे को हुआ है ।
अव प्रश्न उठता है- - क्या आज का ज्ञान भी पुराने ज्ञान से भिन्न होगा ? जैसा कि मैंने कहा, दर्शन भर अलग नही होगा क्योकि वह शुद्धतम है, परन्तु ज्ञान अलग होगा, क्योकि आज की भाषा वदल गई है, सोचने के ढग वदल गए है । जव अरविंद बोलेंगे तब उसमे डार्विन मौजूद रहेगा । महावीर की भाषा अरविंद की मापा से भिन्न होगी, क्योकि महावीर को डार्विन का कोई पता न था । वे डार्विन की भाषा नही बोल सकते और न मार्क्स की । लेकिन अगर मैं बोलूंगा तो मार्क्स की भाषा बीच मे आयगी ही । मैं कहूँगा, शोषण पाप है, महावीर नही कह सकते यह, क्योकि उनके युग मे शोषण के पाप होने की वारणा ही न थी । धन गोषण है, चोरी हैयह धारणा गत तीन सौ वर्षो मे पैदा हुई है । महावीर को हम इस कारण कमजोर नही कह सकते कि उन्हे विकास की भाषा का पता नही था । वह भाषा थी ही नही । आनेवाले हजार वर्षो में भाषा फिर बदलेगी, आज भी बदल रही है ।
इसी बदली हुई भाषा मे फिर ज्ञान प्रकट होगा । अभिव्यक्ति के माध्यम बदल जायँगे । पुरानी भाषाएँ ही काव्यात्मक थी । आजकल की भाषा वैज्ञानिक है । आजकी कविता भी गणित के सवाल की तरह मालूम होती है, बिलकुल गद्य है । पुराना गद्य भी पद्य था : नया पद्य भी गद्य है ।
लोग पूछते हैं कि महावीर की नग्नता उनके चरित्र का ही एक अंग है या उनके दर्शन का ? महावीर की नग्नता उनके ज्ञान का अंग है, चरित्र का नही । अगर किसी को विस्तीर्ण ब्रह्माण्ड से मूक जगत् से सम्बन्धित होना है तो उसके लिए वस्त्र बाबा है । महावीर को इस तथ्य की जानकारी हो गई करना है वह ब्रह्माड से एक होकर ही किया जा उन्होने एक तरह का तादात्म्य साधा है ।
थी कि मुझे जो कुछ अभिव्यक्त सकता है । इसलिए नग्न होकर