________________
द्वितीय अध्याय महावीर का 'त्याग' पिछले जन्मो की साधना सधनो पमत्तस्म भय, सवओ जप्पमत्तम्म नत्थि भय ।।
आचारागमूत्र, ३ ४ १२३
पश जा चुपा है तीथवर यी चेतना पा यक्ति पूणता यो छूकर लौट आता है। इसका अर्थ यह हुआ कि महावीर के लिए म जीवन म करन वो कुछ भी यापी न रहा, मिफ देन को वापी रहा। इस पथन की पई गहरी निप्पत्तिमा म पहली निष्पति यह होगी कि महावीर व सम्य च म यह कहना कि उन्हान त्याग पिया विर बुर व्यथ ह । महावीर न यमी भी भूरपर भी, बाई त्याग नहीं किया । त्याग दिसाई पता है, रविन यह मत्य नहा है। भोग स भरे हुए रागा को किसी भी चीज का छूटना त्याग मालूम पड़ता है। भागा चित्त कुछ भी छोडने म समय नहीं है। वह सिफ पपड़ सकता है, छाड नहीं सकता। जब वह दसता है कि कोई व्यक्ति सहज ही छोड़ रहा है तो इसम ज्यादा महत्त्वपूर्ण और चमत्कार पूण पटना उम मालूम रहा होती । रेपिन महावीर म न पनपा भाव है और न त्यागन का भाव । जो परडत हो रहा, उनप छाइन या ई सवार हो पदा नहा होता।
मरावीर का जिन रोग न देसा है और उन त्याग पी चचाया है, व मागी घे-तना सुनिश्चित है। मागी मन म त्याग का बहा मूल्य है। जा हमार पास नहीं होता उमया ही हम मवाधिव' बाप हाना है और म्मरण रह पि नागी चित्त त्याग पानी मोग माही उपारण बनाता है। मागी नित्त पन या ही हा परडना त्याग योनी पपड ऐता है। यह पाता सएि है लिपीजा ये गिना जा अगुरक्षा मारम पटनी है। अमुरला पा नाय मिना गरा होता है उसी पपड भी उतनी ही मजवा हाती है। एपिन जिम चेतना पाया पता गे गया कि सरपर पाई शुरला महा यह न माम मय है गौर नया पागनाया न बुध मो परीपाडा पाना या असुगमाया मावना पारण, मप र सारण। ययुगमा 7 रही तो पपर भी न । ना अपन भातर प्रविष्ट हना। यह तो
१ प्रमादो पो समात्र भय है अप्रगत रही नपभीत नहीं होता।