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अयःशङ्क
अरुण
अयःशङ्क-एक महादैत्य, जो केकयदेशके एक राजकुमारके अरिषुनेमा-कश्यपपुत्र 'अरिष्टनेमि' नामक मुनि (वन०
रूपमें उत्पन्न हुआ था (आदि० ६७।१०)। १८४ । ८)। अयाशिरा-कश्यप-पत्नी दनुके पुत्रोंमेंसे एक ( आदि० अरिष्टनेमि-(१) विनताके छः पुत्रोमैसे एक । इनके ६५। २३) । यही केकयदेशके एक राजकुमारके रूपमें
अन्य भाइयोंके नाम ये हैं–ताय, गरुड, अरुण, आरुणि, उत्पन्न हुआ (आदि० ६७।१०)।
वारुणि (आदि. ६५। ४०) । परपुरञ्जयका इनके अयति-राजा नहुषके पुत्र । ययातिके भाई ( आदि. आश्रमपर जाना (वन० १८४।८)। इनके द्वारा ७५ । ३०)।
ब्राह्मणोंके महत्त्वका वर्णन (वन. १८४ । १७-२२)। अयवाह-एक भारतीय जनपद (भीष्म०९।४५)। राजा सगरको मोक्षविषयक उपदेश ( शान्ति. अयतनायी-एक पुरुवंशीय क्षत्रिय, जो राजा महाभौमके २८८ । ५-४६)। (२) महर्षि कश्यपका दूसरा नाम पुत्र थे। उनकी माताका नाम 'सुयज्ञा', पत्नीका नाम (शान्ति०२०८1८)।(३) यमराजकी सभामें बैठने'कामा' तथा पुत्रका नाम अक्रोधन' था । अयुत ( दस
वाले एक राजा (सभा०८।९) । (४) विराटहजार ) पुरुषमेध यज्ञोका अनुष्ठान करनेसे इनका नाम
नगरमें अज्ञातवासके समय सहदेवका कल्पित नाम 'अयुतनायी' हुआ ( आदि० ९५।१९-२१)।
(विराट. १०।५)। (५) भगवान् श्रीकृष्णका एक अयोध्या-सुप्रसिद्ध अयोध्यापुरी, जो इक्ष्वाकुवंशी राजाओं
नाम ( उद्योग. ७१। ५)। की राजधानी थी और जहाँ मुनिवर वसिष्ठजी राजा कल्माष- अरिप्रसेन-कौरवपक्षका एक राजा (शल्य० ६ । ३)। पादके यहाँ पधारे थे । (आदि० १७६ । ३५-३६) अरि-गन्धर्वराज हंसकी माता ( आदि० ६७ । ८३)। अयोध्याके धर्मज्ञ नरेश महाबली दीघयज्ञको भीमसेनने
अरिह-(१) एक सोमवंशी क्षत्रिय, जो पूरुवंशीय अवाचीनकोमलतापूर्ण बर्तावसे वशमें कर लिया था (सभा.
द्वारा उसकी पत्नी विदर्भराजकुमारी मर्यादाके गर्भसे उत्पन्न ३० । २)। भगवान् श्रीराम सीताजीसे विवाह करके अपनो पुरी अयोध्यामें आये (सभा०३८ । २९ के बाद पृष्ठ
हुआ था। इसकी पत्नी अङ्गराजकुमारीके गर्भसे महाभौम
नामक पुत्र हुआ (आदि० ९५। १८-१९)।(२) ७९४ दाक्षि० पाठ)। वनपर्वके ६० । २४६६ । २१)
एक सोमवंशीय राजा, जो देवातिथिके द्वारा विदेहराज७० । १८, ७१ । २४, ७४ । १७ ९९ । ४१)
कुमारी मर्यादाके गर्भसे उत्पन्न हुआ था। यह मर्यादा १४८ । १५,१५२ । ३, २०२।१९२९१ । ६० में तथा
अवाचीनकी पत्नीसे भिन्न थी। इस अरिहकी पत्नी अङ्गउद्योगपर्वके ११५। १८ में भी अयोध्याका नाम आया है।
राजकुमारी सुदेवा थी और इसके पुत्रका नाम ऋक्ष' अयोबाहु ( अयोभुज )-राजा धृतराष्ट्रका एक पुत्र
था (आदि० ९५ । २३-२४)। ( आदि० ६७ । ९८)। भीमसेनद्वारा इसका वध (द्रोण. १५७ । १९)।
अरुज-राक्षसोंका दल ( वन० २८५ । २)। अरट्ट-एक देश, जहाँके योद्धाओंको साथ ले द्रोणके मारे ।
अरुण-(१) विनताके पुत्र, पिताका नाम कश्यप । सूर्यके जानेपर कृतवर्मा भागा था (द्रोण. १९३ । १३)।
सारथि । इनकी उत्पत्तिका प्रसंग, इनका अपनी माताको अरण्यपर्व-वनपर्वका एक अवान्तरपर्व (अध्याय १ से
शाप देना और उस शापसे छूटनेका उपाय भी बताना अध्याय १० तक)
(आदि०१६ । १६-२३)। इनका सूर्यके क्रोधजनित अरन्तुक-कुरुक्षेत्रकी एक सीमाका निर्धारण करनेवाला
तीव्र तेजकी शान्तिके लिये उनके रथपर स्थित अरन्तुक नामक द्वारपाल (वन०८३ । ५२)। कुबेर
होना ( आदि. २४ । १५-२० ) । इनके द्वारा सम्बन्धी यह तीर्थ सरस्वती नदीमें स्थित है । यहाँ स्नान करनेसे अग्निष्टोम यज्ञका फल मिलता है (शल्य.
कुपित हुए सूर्यका सारथ्य ( आदि. १६ । २२
२३)। इनका श्येनीके गर्भसे सम्पाती और जटायको ५३ । २४)।
जन्म देना ( आदि० ६६ । ७०)। इनके द्वारा अरालि-विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रों से एक (अनु.
स्कन्दको अपने पुत्र ताम्रचूडका दान (शल्य.४६।
५१ तथा अनु० ८६।२२)। (२) प्राचीन ऋषियोंका अरिमेजय-एक वृष्णिवंशी योद्धा (द्रोण०११ । २८)। एक समुदाय, जिन्हें स्वाध्यायद्वारा स्वर्गकी प्राप्ति अरिष्ट-एक वृषभरूपधारी असुर, जिसे पशुओंके हितकी हुई (शान्ति० २६ । ७)। ( ३ ) अरुण नामक कामनासे भगवान् श्रीकृष्णने मारा था (समा० ३८१२९ एक नाग, जो परमधाम पधारनेके समय बलरामजीके के बाद दाक्षिणात्य पाठ पृष्ठ ८.)।
स्वागतमें आया था ( मौसल० ४।१५)।
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