Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University
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आचार्य व्याघ्रपद्य का नाम पाणिनीय व्याकरण में उपलब्ध नहीं होता । का शिका 8/2/1 में उदधत 'शुष्किका शुकजघा च' कारिका को भटोजी दीक्षित ने वैयाघ्रपद्यविरचित वार्तिक माना है । अत: यदि यह वचन पाणिनीय सूत्र का प्रयोजन वार्तिक हो, तो निश्चय ही वार्तिककार वैयाघ्रपद्य अन्य व्यक्ति रहा होगा। हमारा विचार है कि यह कारिका वैयाघ्रप्रदीय व्याकरण की है परन्तु पाणिनीय सूत्र के साथ भी संगत होने से प्राचीन वैयाकरणों ने इसका सम्बन्ध पाणिनि के 'पूर्वत्रातिदम्' सूत्र से जोड़ दिया। इससे यह स्पष्ट है कि आचार्य वैयाघ्रपद्य व्याकरण
प्रवक्ता
था।
आचार्य रोदि का निर्देश पाणिनीय तंत्र में नहीं है । वामन का शिका 6/2/37 में उदाहरण देता है - 'आपिलपाणिनीयाः, पाणिनीयौदीया:, रौटीयका शिकृत्तना: '। इनमें श्रुत आपिशल, पाणिनि और कानाकृत्स्न निस्सन्देह वैयाकरण हैं अतः इनके साथ स्मृत रोटि आचार्य भी वैयाकरण होगा ।
चरक संहिता के टीकाकार जज्झट ने चिकित्सास्थान 2/26 की व्याख्या में आचार्य शौनकि का एक मत उदधृत किया है - कारणशाब्दस्तु व्युत्पादित: - करोतेरपि कर्तृत्वे दीर्घत्वं शास्ति शौनकिः । इससे यह स्पष्ट है कि शौनकि भी
व्याकरण प्रवक्ता था ।
गौतम का नाम पाणिनीय तंत्र में नहीं मिलता । महाभाष्य 6/2/36 में 'आपिशलपाणिनीयध्यडीगौतमीया: ' प्रयोग मिलता है। इसमें स्मृत आपिशालि,