Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University
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मातुली, मातुलानी, इत्यादि उदाहरण दिये । आनुक् के अभाव में भी मातुली इत्यादि में डीप दिखाया है | भाष्यकार ने यदि यह डीष का भी विकल्प विधान करता तो जिस प्रकार 'जानुक्' विकल्प से है, वैसे ही 'डी' के विकल्प होने पर 'उपाध्याया' मातुला' यह ताबन्त का उदाहरण ही भाष्यकार के द्वारा दिये गये होते । यहाँ जो 'डी' एवं 'मनु' है वे दोनों ही 'योग' में ही जानना चाहिए। क्योंकि 'पुयोगादाख्यायाम्' इसी सूत्र से यहाँ 'डी' होता है । 'अनुक्' विधायक 'इन्द्रव रम्ग' इसमें ''योग' की अनुवृत्ति होने से यदि बाधक न हो तो 'पुयोग' में ही 'आनुक्' भी होता है ।
आचायांदणत्व च
• 'इन्द्रवरणभवशर्व स्ट्राड हिमारण्ययवयवनमातुलायार्याणामानुक्2 इस सूत्र के भाष्य में यह वार्तिक पढ़ा गया है। आचार्य शब्द से 'पुयोगादाख्यायाम' से 'डी' उसके सन्नियोग से 'इन्द्रव सा' इस सूत्र से आचार्य शब्द को आनुक का अगम विधान किया जाता है | आनुक् के नकार को 'अकुप्वाइ.' इस सूत्र से प्राप्त णत्त्व का इप्स वार्तिक से निषेध किया जाता है। उदाहरण - आचार्यस्य 'स्त्री प्राचार्य की स्त्री। आचार्यानी। यह वार्तिक केवल णत्त्व का निधही करता है । डीप एवं आनुक् तो 'पुंयोगादास्यायाम्' तथा 'इन्द्रव रणभवास्द्रमूडहिमारण्ययवयवनमानाचार्याणामानुक्' इस सूत्र से ही सिद्ध है । क्षुम्नादिगण
---------- I. लघु सिद्धान्त कौमुदी, स्त्री प्रत्यय प्रकरणम्, पृष्ठ 1238. 2. अष्टाध्यायी 4/1/49.