Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University

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Page 229
________________ स्वार्थ में इप्स वार्तिक को स्वीकार करने पर इस वार्तिक की प्रवृत्ति के अभावपक्षा में अर्यात्रिय इन स्वार्थपर शब्दों से किसी से भी डीष न प्राप्त होने से टाप होता है । ऐसा उद्योत एवं लघुमाब्देन्दुशेवर में स्पष्ट है । वृत्तिन्यासपदम जरीकारों को भी यही पक्ष अभिमत है। इसी अभिप्राय से सिद्धान्तकौमुदी में श्री मटोजिदीक्षित ने स्वार्थपद घटित वार्तिक पढ़ा है। इसी आशय से अप्राप्त डीप एवं आनुक् का यह विकल्प विधान करता है, क्योंकि पुयोग में डी प्राप्त होने पर भी स्वार्थ में डी अप्राप्त ही है। पुयोग में तो 'पुंयोगादाख्यायाम इस सूत्र से नित्य डीप होगा। निष्कर्षतः जो स्वयं अर्यत्वविशिष्ट क्षत्रिय की भी स्त्री हो तब भी अर्थी, क्षत्रियी ऐसा रूप बनेगा । • योपप्रतिषेधे ह्यगवयमुकयमनुष्यमत्स्यानामप्रतिषेधः' 'जातेरस्त्री विष्यादयोपधात '2 इस सूत्र के भाष्य में यह वार्तिक पठित है। इस सूत्र में अयोपध के कथन से यकारोपधकप्रातिपदिकों से जो सूत्र के अन्य निमित्तों पूरा भी करते हैं। उनसे डी का विधान नहीं होता । अत: इस वार्तिक के द्वारा वार्तिकगत 'हय, गवय, मुकय, मत्स्य इत्यादि शब्द जो 'योपध' है उनसे भी 'डीप' का विधान किया जाता है । उदाहरणार्थ हयी, गवयी, मुकयी, मत्सी । 'मनुधी' यहाँ 'हनस्तद्रिस्य' इस सूत्र के द्वारा मनुष्य 1. लघु सिद्धान्त कौमुदी, स्त्री प्रकरणम् , पृष्ठ 1036. 2. अष्टाध्यायी, 4/1/63. 3. वही, 6/4/150.

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