Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University
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लोप हो जाता है । ऐसी स्थिति में इन प्रयोगों में भी 'अकार' के साथ ही 'पररूप' होता है । इस प्रकार पहले से चले आ रहे 'आत्' का परित्याग नहीं करना पड़ता है । यह सब 'मनोरमा' में स्पष्ट है । शकन्धु कर्कन्धु कुलटा, सीमन्तः इत्यादि इस वार्त्तिक के उदाहरण भाष्य में कहे गए हैं
।
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कुल + अट, कर्क + अन्धु सीमनुकअन्त इत्यादि इनका विग्रह है 'अटति' इस विग्रह में 'पचादि अच्' हुआ है तथा 'कुलानां अटा कुलटा' यह षष्ठी समास्त्र है । 'कुलानि अति' इस विग्रह में 'कर्मण्यण' इस सूत्र से 'अणु की प्रसक्ति होगी । सीमन्ते शब्द में 'पररूप' केश'. के वेश में ही होगा । इस लिए कौमुदीकार ने 'सीमान्त केश वेश' यह पढ़ा है। 'शकन्धु' आदि आकृतिगण है । जिन शब्दों में 'पररूप' देखा जाता है और वह इष्ट है तथा 'पररूप' विधायक कोई सूत्र उपलब्ध नहीं होता है । उन सभी शब्दों की गणना 'शकन्ध्वादि' में समझना चाहिए । हरदत्त ने भी कहा है कि 'शकन्ध्वादिगण' का अनुकरण प्रयोग से करना चाहिए । 'कुलटा या वा कुलटा' शब्द में भी 'पररूप' होता है । 'लोहितादिकट तेभ्यः', 'व्यवहपणयोः समर्थयो:' इत्यादि निर्देश 'शकन्ध्वादि के आकृतिगण में प्रमाण हैं । 'कुलCT ' शब्द तथा 'समर्थ' शब्द में आकृतिगण होने से 'पररूप' सिद्ध होता है । इसलिए भाष्य में अनुक्तु मार्तण्ड : ' इत्यादि प्रयोगों में भी कौमुदीकार ने प्रदर्शित किया है । यह वार्त्तिक भी भाष्य रीति से वाचनिक
तथा न्यासरीति से व्याख्यान साध्य है ।
1. प्रौढ मनोरमा, स्वरसन्धि प्रकरणम्, पृष्ठ 171.
2. महाभाष्य, 6/1/94.
शक + अन्धु
"अटT' शब्द