Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University

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Page 204
________________ 186 ने 'बहिषष्टिलोपो य, च' इस वार्तिक से 'बहिष' का 'टि' लोप विधान करके अव्ययों के 'टि ' लोप का अनित्यत्व प्रतिपादन करते हुए 'रातीयः ' इत्यादिकों में 'टि' लोप नहीं ऐसा प्रतिपादन करते हैं ।। अध्यात्माइडदेः 'ठ ' ईष्यते 'अन्तः पूर्वपदादठ,” सूत्र व्याख्यान में भाष्यकार ने 'समानत्य तदादेव अध्यात्मादिषु चेष्यते' इप्त प्रलोक वार्तिक का उपस्थापन किया है । समान शब्द तथा समान हो आदि में जिस के ऐसे शब्दों से, अध्यात्मादि शब्दों से भव अर्थ में उक्त वार्तिक से ',' का विधान किया जाता है । समान शब्द से 'ठ.' प्रत्यय करने पर 'सामा निक: ' तथा समान हो आदि में जिस के समान 'गामिक: ' अध्यात्मिकः' इत्यादि शब्द रूपों की निष्पत्ति होती है । 'अत्मा इति आध्यात्मां विभत्यर्थ में अव्ययीभाव समास तथा 'अनश्च"" सूत्र से समासान '' अन्त्तर इस वार्तिक से 'ठ.' प्रत्यय, अध्यात्मा दि आकृति गण है । वार्तिक में निर्दिष्ट सभी आकृतिगण है । उक्त वार्तिक एकादेश अनुवाद रूप वरदराज ने 'अध्यात्मादेष्ठ जिष्यते' लिखा है। १. अनित्यो यं बहिषाष्टिलोप विधानात् तेनेह न ारातीयः - लघ्न सिद्धान्त कौमुदी । 2. लनु सिद्धान्त कौमुदी, तद्रित प्रत्यय प्रकरणम्, पृष्ठ 936. 3. अECTध्यायी, 4/3/60. 4. वही, 5/4/108.

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