Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University

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Page 208
________________ 190 व अर्थ बनता है । इसी से 'रूपवान : ' इत्यादि स्थनों में 'मतुप्' का लोप नहीं है 'शुक्ल: पट: ' इत्यादि स्थनों में उत्पन्न 'मतुम्' का लोप इस वार्तिक से हो जाता है । प्राण्याइगदेव 'प्राणिस्थादातोलजन्यतरस्याम इप्स सूत्र भाष्य 'प्राण्यगदिति वक्तव्यम् । इस वार्तिक का उल्लेख किया गया है । उक्त सूत्र से 'प्राणिस्थ अग' से जो 'लच' प्रत्यय विहित है वह प्राणी अग से ही हो । अतः 'मेधा चिकीा' आदि से 'प्राणिस्थ' होने पर भी प्राणी के अग ।अवयव। का अभाव होने से 'लच्' प्रत्यय नहीं होगा । 'मेधा अस्याक्तीति मेधावान् चिकीजावान् ' यही रूप निष्पन्न होता है। 'चूडाल: ' इत्यादि से सदश लच्' प्रत्यय नहीं होता । 'मेधा चिकीर्षादि' शब्दों से 'अनभिधानालच्' नहीं होगा ऐसा मानकर भाष्यकार' ने 'प्राण्याइग' ग्रहण को प्रत्याख्यात् कर दिया है । ------------------ 1. शुक्लादय एवाभिन्न रूपागुणे तद्धित द्रव्ये च वर्तमाना गृह्यन्ते, न तु रूपादयः सर्वथा गुण मात्र वाचिन: - प्रदीप 5/2/94. 2. लघु सिद्धान्त कौमुदी, तदित प्रत्यय प्रकरणम्, पृष्ठ 187. 3. अScाध्यायी, 5/2/96. 4. तत्तर्हि वक्तव्यम् १ न वक्तव्यम् । कस्मान्न भवतिजिहीर्णा स्यास्तिचिकीर्णा स्यास्ति इति १ अनभिधानात् - महाभाष्य 5/2/96.

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