Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University

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Page 210
________________ 192 3 सन्त्यस्य इस विग्रह में प्रकृत वार्त्तिक से 'मतृवर्धक' व प्रत्यय, 'सकार' लोप करके 'अणवि: ' की सिद्धि की जाती है । अन्येभ्यो पि दृश्यते' ,2 'रजः कृष्णमुतिपरिषद वलच् " इस सूत्र भाष्य में इस वार्तिक का पाठ है सूत्रार्थ के अनुसार तथा तत्तद शब्दों से और अन्य शब्दों से भी 'मतुप्’ अर्थ में 'वलच्' प्रत्यय होता है । भातृवल:, पुत्रवल : इत्यादि इस वार्त्तिक के उदाहरण है । दृशि ग्रहणात् भवदादि योग एव 'इतराभ्यो पि दृश्यन्ते " सूत्र भाष्य में यहाँ क्लच नहीं होता है - र तौ, ते अतिव्याप्ति की आशंका करके 'भवदादि योग इति वक्तव्यम्' इस प्रक वार्तिक का उल्लेख किया गया है । भवदादि कौन है इस आकांक्षा में 'भवाम् दीर्घायुः देनानां प्रियं: आयुष्मान् यह वाक्य उपस्थापित किया गया है 1. लघु सिद्धान्त कौमुदी, तद्धित प्रत्यय प्रकरणम्, पृष्ठ 989. 2. अष्टाध्यायी, 5/2/112. 3. लघु सिद्धान्त कौमुदी, तद्वित प्रत्यय प्रकरणम् पृष्ठ 998. 4. अष्टाध्यायी, 5/3/14. -

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