Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University
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अन्येभ्यो पि दृश्यते
'केशद्रो न्यतस्याम'2 इस सूत्र की व्याख्या में भाष्यकार ने भाष्य में 'व प्रकरणे मणि हिरण्याभ्यामुपसंख्यानम्' इस वार्तिक का उल्लेख करते हुए, ऐसा कहकर व प्रकरण में 'अन्येभ्यो पि दृश्यते' इस वचन का उपस्थापन किया है। पूर्व वचन की अपेक्षा इस उत्तर वचन को व्यापक मानकर वरदराज जी ने लघु सिद्धान्त कौमुदी में उत्तर वचन का पाठ किया है। इससे यथार्थ 'मतुप्' अर्थ में व प्रत्यय किया जाता है। जैसे - मणिनः मार्ग विशेष की संज्ञा, हिरण्यवः विधि विशेष की संज्ञा है । इसी प्रकार विम्बावम् , कुर रावम् इत्यादि उदाहरण 'अभ्येभ्या पि दृश्यते' इप्त वार्तिक में भाष्यकार ने दिया है "विम्बावम् कुर रावम्' इत्यादि स्थनों में अन्येषामपि दृश्यते' से दीर्घ होता है ।
असो लोपाच
'शादो न्यतरस्याम' सूत्र में ही वृत्तिकार ने इस वचन का उल्लेख किया गया है परन्तु म्हाभाष्य में इसका पाठ नहीं है । 'अणां प्ति जला नि
1. लघु सिद्धान्त कौमुदी, तदित प्रत्यय प्रकरणम्, पृष्ठ 989. 2. अष्टाध्यायी, 5/2/109.
3. लघु सिद्धान्त कौमुदी, तद्वित प्रत्यय प्रकरणम्, पृष्ठ 989. 4. अष्टाध्यायी, 5/2/109.