Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University
View full book text
________________
200
नित्ययामेडिते हाची ति वक्तव्यम्
'नामेडितान्त्यस्य तु वा' इस सूत्र के भाष्य में यह वार्त्तिक पठित है। वृत्तिकार ने तो पाठ में ही इसका प्रक्षेप कर दिया है । 'डार' से पर जो 'आमेडित' उस के परे रहते अव्यक्तानुकरण का जो 'अचे शब्द' उप्त के 'अन्त्य' तथा पर जो 'आमेडित तदादिभूत वर्ग उन पूर्वपर के स्थान में 'पररूप एकादेश होता है, यह इसका अर्थ है । जैसे पटपटाकरोति । यहाँ 'पट त्' इस अव्यक्तानुकरण से 'डार' की विवक्षा करने पर 'डाचि च' इस वार्तिक के द्वारा 'द्वित्व', तदनन्तर 'अव्यक्तानुकरणं से ' अव्यक्तकरणा द्वयजवरार्धादी नितौडाच' इस सूत्र के द्वारा 'डाच्' परे रहते 'द्वित्व' से 'टिलोप' करने पर 'पट त्पटा' इस स्थिति में द्वितीय 'पटत्' के 'डार' के 'आमेडित' होने के कारण 'पट त्' के 'तकार' 'तदादि पंकार' के स्थान में 'पररूप' पकार! इस वार्तिक के द्वारा विधान किया गया है । यहाँ पर भी डार की विवक्षा में ही 'द्वित्व' होगा न कि 'डाच्' पर में रहते । यदि 'डार' पर में, रहते ऐसा अर्थ मानेगे, तो 'डाच्' परे रहते 'दित्व से ' पहले अन्तरग होने के कारण 'टिलोप' हो जायेगा तदनन्तर 'द्वित्व' होगा अतः 'cान्त' को ही 'द्वित्व' होगा इस प्रकार से 'पटपटा' की तिदि नहीं होगी। अतः 'डाचि च' में सप्तमी'विष्य सप्तमी' ही जानना
चाहिए ।
---------::०::-------
।. लघु सिद्धान्त कौमुदी, तद्रित प्रत्यय प्रकरणम्, पृष्ठ 102 1.