Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University
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पर्यादयो ग्लानाद्यर्थे चतुथ्यं ।
निरादयः क्रान्ताद्यर्थे पचम्या
'कुगतिप्रादय?' सूत्र के भाष्य में 'प्रादयः क्तार्थे' इस वार्त्तिक का उपन्यास करके 'एतदेव सोनागैर्विस्तर तर्केण पठितम् उत्युक्ति पूर्वक प्रादयो ताद्यर्थे प्रथमया' इत्यादि पाँच वार्तिक पढ़े गये हैं । इस प्रकार ये सोनाग के वार्त्तिक 'प्रादयः कतार्थे' इस कात्यायन वार्तिक के ही प्रप च रूप हैं । इस पर क्यूट कहते हैं कि 'कात्यायानाभिप्रायमेव प्रदर्शयितुं सोनागैरिति विस्तरेण पठितम् । यह सब कुगतिप्रादय!' सूत्रस्थ 'प्रादय: ' का ही प्रप च है । गताद्यर्थ' में वर्तमान प्रादी 'प्रथमाद्यन्त' के साथ समास होता है यह वार्त्तिक समूह का अर्थ है । जब 'गताद्यर्थ' में 'प्रादीयों' की आवृत्ति है तब उनकी 'गति संज्ञा न होने से गति ग्रहण से ग्रहण न होने के कारण समास नहीं प्राप्त हुआ अतः तद्विधानार्थं सूत्र में प्रादी का ग्रहण किया और उसके, प्रप चस्वरूप इन वार्त्तिकों का अवतार किया । गताद्यर्थ में प्रादियों की वृत्ति पदेकेदेशन्यास से होगी । यह उद्योत में स्पष्ट है । यथा - प्रगत: आचार्य: इस वृत्ति में
1. लघु सिद्धान्त कौमुदी, तत्पुरुष समास प्रकरणम्, पृष्ठ 751.
2. वही, पृष्ठ 852.
3. अष्टाध्यायी, 2/2/8.
4. प्रदीप 2 / 2 / 18.