Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University
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निष्पन्न होता है । यदि यहाँ पर 'पुंगवदभाव' हो तो 'रोहिणी' शब्द का स्वरूप रोहित हो जाता है । 'ढक्' प्रत्यय 'सामभिव्यवहार' से 'राहतेय : ' यह रूप हो जाता है क्योंकि रोहित वर्ण विशिष्टा 'स्त्री रोहिणी रोहिता' यह रूप 'वर्णादनुदात्तात्तोपधात्रीन: ' सूत्र से 'रोहिणी रोहिता' यह रूप होता है। इस वार्त्तिक में स्त्रीभ्योदक' सूत्र से विहित 'टक्' प्रत्यय ही ग्रहीत होता है । इसमें प्रत्यासक्ति न्याय मूल' समझना चाहिए तथा तत्त्वबोधिनीकार ने इसे व्याख्या कर सिद्ध किया है । इसका फल यह है कि 'अग्नेर्दक्' से विहित 'ढकू' प्रत्यय नहीं ग्रहीत हुआ इसलिए 'अग्नयी देवता अस्य स्थालि पादस्य' इस विग्रह में 'अग्नायी' को 'पुंग्वदभाव' होकर 'आग्नेयः प्रयोग सिद्ध हो गया अन्यथा 'यस्येति च' से 'इकार' का लोप होकर 'आग्नायेय' हो जाता है । भाष्य, प्रदीप, उद्योत, तत्त्वबोधिनी प्रभृति ग्रन्थों की दृष्टि से व्याख्यान
इस प्रकार
सम्पन्न हुआ ।
जहां चेति वक्तव्यम्
'ग्रामजन बन्धुसहायेभ्यस्तल 2 सूत्र भाष्य व्याख्यान में उक्त वार्तिक का उल्लेख है । गज, सहाय शब्दों से 'समूह' अर्थ में 'तलु' प्रत्यय होता है ।
1. लघु सिद्धान्तकौमुदी, तद्वित प्रकरणम्, पृष्ठ 914.
2. अष्टाध्यायी, 4/2/43.