Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University
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'तनन्तस्त्रियाम्' इस नियम से 'क्लन्त प्रत्ययान्त' शब्दों का 'स्त्री लिइंग' में ही प्रयोग किया जाता है अतः 'गजानां समूहः सप्तयाना समूह: ' इस विग्रह में उक्त वार्तिक से 'तत्' प्रत्यय करके 'स्त्रीलिङ्ग प्राब्दस्य' गजता, सहायता निष्पन्न होते हैं ।
अहन्: रवः क्रतो
उपर्युक्त सूत्र की व्याख्या में ही भाष्यकार में 'अह्नः रवः क्रतो' इन दो वार्तिकों का उपस्थापन किया है। पूर्ववार्तिक की अतिप्रसक्ति वारण हेतु उत्तर वार्तिक का पाठ किया गया है। इन दोनों वार्तिकों का एक रूपात्मक व्याख्यान सिद्धान्त कौमुदी में दीक्षितजी द्वारा किया गया है । "अहन्' शब्द से समूह अर्थ में 'रव' प्रत्यय होता है । यदि 'यज्ञा वाच्य' हो, 'एतावता क्रतु
यज्ञ वाच्य अहन्' शब्द से 'रव' प्रत्यय हो । यह वार्तिक का स्पष्ट अर्थ हुआ । अहनां समूहः इस विग्रह में उक्त वार्तिक से 'रव' प्रत्यय होकर 'रव' को 'इनादेश' 'अहिनष्क रवोरेव सूत्र से दिलोप होने पर अहीनः क्रतुः रूप की निष्पत्ति होती है क्रतु से अन्यत्र आहन् बनता है । अतएव भाष्यकार ने कहा है कि 'क्रता विति वक्तव्यम्' यहाँ पर न हो 'जाह्नायधूतपाप्मानोभास्करराजित
1. लघु सिद्धान्त को मुदी, तद्वित प्रकरणम् , पृष्ठ 9 14. 2. अScाध्यायी 4/2/43. 3. वही, 6/4/145.