Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University
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स्वतिभ्यामेव च।
'न पुन्जनात्' सूत्र के भाष्य में महर्षि पत जलि ने 'स्वतिभ्यामेन' इस वार्तिक का प्रदर्शन किया है । इसका तात्पर्य यह है कि 'पुजनार्थक' शब्दों में 'सु' तथा 'अति' यह दो ही शब्द लिये जायें, जिससे 'शोभनश्चासौ राजा सुराजा' तथा अतिपायति चासो राजा च अतिराजा' इन स्थलों में राजा द्वस् सखिभ्यश्च टच' सूत्र से प्राप्त समासान्त ।टच' का निध हो गया तथा 'परम्भ चासो
राजा मर राज' यहाँ पर 'टच' का निषेध नहीं हुआ। यह निषेध बहुव्री हो 'सान्यय६ णोः स्वाडे. सूत्र से पूर्वधूती जो समासान्त प्रत्यय विधायक सूत्र है उन्हीं का निषेध करता है इस लिये 'सु' सक्थः, स्वक्षाः ' इन प्रयोगों में 'अ' प्रत्यय का निध नहीं हुआ। क्योंकि 'प्रागबहुव्रीहिरिति वक्तव्यम्' इस भाष्य वचन के आधार पर निशेध व्यवस्था की है ।
देवाधार
'दित्यदित्यादि त्यपत्युत्तरपदाण्य? ' सूत्र में भाष्यकार ने 'देववस्यय यौ' इस वार्तिक का उल्लेख किया है। सिद्वान्त कौमुदी में देवात् यह 'पञ्चम्यन्त
1. लघु सिद्धान्त कौमुदी, तदित प्रकरणम्, पृष्ठ 884. 2. वही, अपत्याधिकार प्रकरणम्, पृष्ठ 888. 3. अष्टाध्यायी 4/1/85.