Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University
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त्तरपद ' का लोप करने के लिए यह वार्तिक बनाया गया है। समास तो 'विशेषणं विशेष्येण बहुलम्' इससे ही होगा। यहाँ पर 'शाका दि' पद की ही 'शाकभोज्याद्यर्थ' में लक्षणा करने पर तथा 'विशेषणं विशेष्येण बहुलम्'' इससे ही समास कर लेने पर 'शाकपार्थिवः' की सिद्धि हो जायगी। शाकभोजी इस अर्ध का ज्ञान उक्त, प्रकार से ही हो जायगा । 'भोज्यादि' पद की 'प्रयोगापत्ति भी नहीं होगी। एतर्थ उत्तरपद के लोप करने के लिए इस वार्तिक को नहीं करना चाहिए यह कैयc का मत है । यह सब प्रदीप में स्पष्ट है । इस पर नागेशा कहते हैं कि जब 'शाकभोजी' इत्यादि 'पदद्वय' के समुदाय से 'शाकमोजी' रूप अर्थ अभिप्रेत है तब 'शा कभोज्यादि' पद का पार्थिवादि' पद के साथ समास करने पर 'शा कभोजीपार्थिवः' इत्यादि प्रयोग का वारण करने के लिए इस वार्ति को करना ही चाहिए । यह उद्योत में स्पष्ट है ।
प्रादयोः गताद्यर्थे प्रथमया
अनादयः क्रान्ताद्यर्थे द्वितीयया'
अवादयः कृष्टा द्यर्थे तृतीयया'
1. अScाध्यायी 2/1/57.
सबसमास प्रकरणम पृष्ठ 849.
3. वही, पृष्ठ 750. 4. वही, पृष्ठ 852.