Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University
View full book text
________________
75
के मकार' के स्थान पर उनके अन्तरतम अनुना सि क य लॅ होते हैं। अनुनासिक
और अननुनासिक के भेद से ये व ल दो प्रकार के होते हैं । 'मकार अनुना सिक' ही होता है । न्यास पदम जरी और प्रक्रिया प्रकाशकार के मत से यहाँ 'मकार' के स्थान पर 'अनुनासिक' ही यँ ल होने चाहिए । नागेश के मतानुसार 'अननुनासिक ' ही 'यवल' होता है । यवल ' के दो प्रकार होने पर भी वार्तिक में अननुनासिक' का ही निर्देश है । ग्रहण-शास्त्र के बन से 'अनुनासिक य व ल' का ग्रहण नहीं हो सकता है तथा जाति पक्षों को आश्रयण करने पर भी 'अनुनासिक य व ल' का ग्रहण नहीं होता है क्योंकि 'भाव्यमानेन सवर्णानां न ग्रहणं' अर्थात् विधीयमान अण सवर्ण का ग्रहण नहीं कराता है ।। इस परिभाषा से निषेध हो जाने के कारण यहाँ सानुनासिक 'यवल' का गृह्य नहीं होता है । यह उद्योत' और लधाब्देन्दुशेखर में स्पष्ट है। यह वार्तिक भी 'अनुस्वार' के विकल्प पक्ष में 'यवल ' के अपूर्व विधान करने के कारण वाचनिक है । न्यासकार ने इस वार्तिक के अर्थ की भी व्याख्यान साध्य बतलाया है। उनका कहना है 'मोराजिः समः क्वो' इस सूत्र में 'न' ही
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
1. वार्तिके यवला निरनुनासिका एव विधीयमान त्वात् । उदाहरणेनु सानुनासिक ___ लेखास्तु लेखक प्रमादादित्याहुः । - उद्योत 8/3/36.
2. एते यवला निरनुनासिका एव विधीयमानत्वेन सवर्णाग्राहकत्वात, जातिग्रहण प्राप्तस्यैव गृणाभेदकत्व प्राप्तस्यापि 'अप्रत्यय' इत्यनेन निषेधाध्य ।
लघु शब्देन्दु शेखर, हल्म न्धि प्रकरणम्, पृष्ठ ।29.