Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University
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कब्रापत्ति' भी होगी। इसलिए तीसरा भी खण्डन का प्रकार भाष्यकार ने कहा है । वह यह कि 'तदर्थ' का जो 'उत्तरपद' अर्थ का आदेश किया है आदेश के साथ विग्रह नहीं होता । जैसे 'ब्राह्मणाय पयः ब्राह्मणार्थम्' यह पर 'पय' शाब्द को 'अर्थशाब्दादेश' हो गया है उसी प्रकार यहाँ पर भी होगा । 'तदर्थ' शब्द के 'उत्तरपद' को 'अादेश' किससे होगा। कहते हैं - चतुर्थी तदधार्थ' इस सूत्र में 'चतुर्थी' यह योगविभाग कर लेगे । 'चतुर्दान्त' का समर्थ 'सुबन्त' के साथ समाप्त होता है यही उसका अर्थ है । तब फिर 'तदर्थार्थ' यह योग करेंगे । 'तदर्थ' के अर्थ में यह आदेश होता है यह उप्त का अर्थ है लेकिन ऐसा स्वीकार करने पर 'उदकार्थो वीवधः ' वीबध शब्द को अादेश होने पर 'स्थानिवदभाव' से उसको 'बीवध' शब्द से ग्रहण हो जाने से मन्थोदनस क्तुबिन्दुवज्रभारहारवीवगाहेषु च सूत्र से 'उदक' शब्द को 'उदादेश' की आपत्ति होगी। अतः इस प्रत्याख्यान प्रकार की उपेक्षा करके चौथा प्रत्याख्यान का प्रकार भाष्य में कहा है । जैसे - विग्रह में अर्थशाब्द का प्रयोग न हो इस लिए ही इससे नित्यसमास कहते हैं अन्यया ब्राह्मणेभ्योऽयं' की तरह 'ब्राह्मणेभ्योऽर्थ' यह 'अनिष्ट' विग्रह वाक्य प्रसक्त होगा । यहाँ पर कहना चाहिए कि 'ब्राह्मणोभ्य ' में 'तदर्थ' में 'चतुर्थी' है । अतः 'चतुर्थी' से ही 'तदर्थ' उक्त हो जाने से, 'चतुर्थी के संम
विधान में अक्षाब्द का प्रयोग नहीं है । 'उक्तार्थानाम् प्रयोगः ' इस न्यास से । 'चतुर्थ्यन्त' का अर्थ शब्द के साथ समास 'चतुर्थी तदर्ध' इस 'विधानबलात्' हो
1. Fध्यायी 6/3/60.