Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University
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हो जायगा 'अर्थेन नित्य समासवचनं' बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है और 'सर्व लिङगता' का विधान भी व्यर्थ है 'लिगस्य लोकाभ्रित' होता है । यह सब इसी सूत्र के भाष्य में स्पष्ट है ।
सर्वनाम्नो वृत्तिमात्रे पुंवंदभावः ।
'दिइनामान्यन्तरले '2 इप्त सूत्र के भाष्य में 'सर्वनामो वृत्तिमात्रे पुंवंदभावा' यह वार्तिक पढ़ा गया है। यह वहाँ पर भाष्यकार का वचन ही वार्त्तिक नहीं । 'तद्धितार्थोत्तर पदतमाहारे चु' इस सूत्र के व्याख्यान के समय 'पार्वशाल : ' इत्यादि में 'वभाव करने के लिए लच्नु सिद्धान्त को मुदी में इसका अवतरण किया गया है । 'दक्षिणपूर्वा' इत्यादि में 'दिइनामान्यतराले ' इस समास में दक्षिणादि शब्दों को 'घुवंदभाव' करने के लिए भी इसका फल है । यद्यपि पौर्वशालF' में तत्पुरन करने पर भी 'दक्षिणपूर्वादि' में बहुव्रीहि करने पर भी 'पुर्व कर्मधारयजातीयदेशीमेषु', 'स्त्रिया: 'वंदभाषित पुस्कादनूइ. समानाधिकरणे स्त्रियामपूरणी प्रियादिषु' से 'पुवंदभाव' सिद्ध है तथा पि 'दक्षिणोत्तरपूर्वाणों' इत्यादि में जहाँ पर 'समानाधिकरण उत्तरपद नहीं है वहाँ 'पुवंदभावं
1. लघु सिद्धान्त कौमुदी, तत्पुरुष समाप्त प्रकरणम् , पृष्ठ 842. 2. अECTध्यायी 2/2/26. 3. वही, 6/3/42. 4. वही, 6/3/34.