Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University
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प्रकृत कर 'युष्मदात्मदादेश' को 'निघात' और 'युष्मदस्मादेश' का विधान किया जाता है । 'निमित्त' और के 'एक वाक्यस्थत्व' होने पर 'निघात'
और 'युष्मदस्मदादेश' होते हैं यह भाव है । 'अयं दण्डोहरधानेन' इस वाक्य में 'समानवा क्यस्थ' होने से 'हर' की 'तिडइतिड'। इस सूत्र से 'निघात' नहीं होता है यहाँ 'अयं दण्डः ' यह पृथक् वा क्य है । पद से परे विद्यमान 'तिडन्त को 'निधात' होता है । 'दण्डः ' यह पद है उसके परे 'हर' यह 'तिडन्त' है किन्तु वह पद पूर्व वाक्यस्थ है और वह 'तिडन्त' उत्तर वाक्यस्थ है अत: नमित्त और निमित्त का एक वा क्यस्थत्व नहीं है ।
इसी प्रकार 'ओदन पच तव भविष्यति' इत्यादि स्थल पर 'ते मया कवचनत्य' इस सूत्र से 'तव' को 'ते' आदेश भी नहीं होता है । ये भी आदेश पद के परे विद्यमान 'युष्मदस्मद' को ही होता है । इप्त वाक्य में 'ओदन पच' यह पृथक् वाक्य है तथा 'तव भविष्यति' यह पृथक् है । यहाँ पर भी निमित्त भूत पद 'पच्' और कार्यो 'युष्मद' शब्द ये दोनों एक वाक्य में नहीं है । 'युष्मदस्मादेश' शब्द से 'युष्मदस्मदा: प्रठी चतुर्थी द्वितीयास्थ्यो: वाम् नौ' इत्त प्रकरण में विधीयमान 'वाम् नौ' आदि आदेश ही लिए जाएँगे । यहाँ 'अयं दण्डो हरनेन' इत्यादि वाक्यों में अनेन ' इस शब्द से पूर्व वाक्य में 'उपान्त दण्ड' का परामर्श किया जाता है क्योंकि उसी में हरण क्रिया के प्रति 'करणत्व ' अवगत है । अतः सामर्थ्य विद्यमान है। इसी प्रकार से 'ओदनं पच तव भविष्यति'
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1. अष्टाध्यायी 8/1/28.