Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University
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परी व्रजे: मच पदान्ते
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हलन्त शब्दों में अन्वाख्यान करते हुए लघु सिद्धान्त को मुदीकार वरदराजाचार्य ने उक्त वार्तिक को 'परिवाद' प्रयोग के साधनार्थ प्रस्तुत किया है । यह वातिक उणा दिगण पठित है । तथा इस के पूर्व 'क्किव्वचिपच्छिद्धिप्रज्वा दीघों सम्प्रसारण च सूत्र पठित है । अत: 'परो व्रजेः षः पदान्ते' वार्तिक में उक्त सूत्र से दिकव तथा दीर्घ इन दोनों पदों का अनुवर्तन होता है जिससे परिणामतः वार्त्तिक 'परिपूर्वक ब्रज धातु से क्विए तथा दीर्घ पदान्त में षत्व का विधान करता है जैसे - परिव्राट । इसी बात को तत्त्वबोधिनीकार ज्ञानेन्द्र सरस्वती ने परिव्रजे ष: में 'इह पूर्व सवाद विप् दीघौं अनुर्वेतत् ' शब्दों में स्पष्ट किया है । 'परित्यज्य सर्व ब्रजति इति परिव्राट'। यह विग्रह जनित अर्थ स्पष्ट है ।
समान वाक्ये निघात् युष्मदस्मादेश वक्तव्यः'
समर्थः पद विधि: "# इप्त सूत्र के तथा 'अनुदात्तं सर्वम् पादादी इस सूत्र के भाष्य पर यह वार्तिक पढ़ा गया है । इस वार्तिक से समान वाक्य
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1. लघु सिद्धान्त को मुदी, हलन्त पुल्लिंग प्रकरणम्, पृष्ठ 286. 2. अष्टाध्यायी, 4/4/18. 3. लघु सिद्धान्त को मुदी, हलन्त पुल्लिंग प्रकरणम् 4. अष्टाध्यायी, 2/1/1. 5. अष्टाध्यायी 8/1/18.