Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University
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इत्यादि वाक्य में 'त्वया पक्व : ओदनः तव भविष्यति' इस अर्थ की प्रती। होती है । अतः यहाँ भी सामर्थ्य है अत: 'सामध्यभावादि' 'समर्थ पद विधि' इस परिभाषा के जागरूक होने से 'निघात' 'युष्मदस्मदादेश' नहीं होंगे । ऐसी शंका नहीं की जा सकती है क्योंकि यहाँ सामर्थ्य विद्यमान है । अत: समर्थ परिभाषा के द्वारा वारण असम्भव होने के कारण इस वार्तिक का आरम्भ करना चाहिए यह कैय्यट का मत है । वृत्तिकार के मत में 'इह देवदत्त माता ते कथयति' 'नद्या स्तिष्ठति कूले शा लिनांति ओदनं दास्यामि' इत्यादि प्रयोगों में 'निघात' और युष्मदस्मदादेश की सिद्धि के लिए यह वार्तिक पढ़ना चाहिए ।' वृत्तिकार का भाव यह है 'इह देवदत्त' इत्यादि वाक्य में'इह' पद का 'मातृ' पद के साथ अन्वय है 'देवदत्त' के साथ नहीं है। अंत: 'इह देवदत्त' इन दोनों पदों में 'असामर्थ्य ' होने से 'समर्थ' परिभाषा के अधिकार में 'आमंत्रितस्य च '2 इस सूत्र से 'निघात' नहीं प्राप्त होता है । इसी प्रकार 'नद्या स्तिष्ठति कूले ' इस वाक्य में 'नदी' का 'कूल' के साथ अन्वय है 'क्रिया' के साथ नहीं है । अत: असामथ्यात् 'तिडडतिड' इस सूत्र से 'निचात' नहीं प्राप्त होता है । इसी प्रकार 'शा लिना ते' इस वाक्य में भी
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1. आमन्त्रिता तं तिडन्ते युष्मदस्मदादेशाश्च यस्मात्पराणि न तेषां सामर्थ्य मिति तदाश्रय निधात युष्मदस्मदादेशा न स्युः 'समर्थ पदाविधिः ' इति वचनात् ।
- काशिका 8/1/1.
2. अष्टाध्यायी, 6/1/198.
3. वही 8/1/28.