Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University
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'प्र' से लेकर 'दश' पर्यन्त शब्दों के अन्त्य अकार से परे 'अण' शब्द के 'अच्' परे रहने पर पूर्व पर के स्थान पर वृद्धि एकादेश होता है । प्राणमव त्सतराणम्, कम्बलाणम्, वसनाणम्, मणीम् , दशाणम् ये सब उदाहरण हैं । एक 'अण' को दूर करने के लिए जो दूसरा 'अण' लिया जाता है उसे 'प्राणम्' कहते हैं । 'दशाण' शब्द देश-विशेष तथा नदी-विशेष में रूद है। यहाँ ध्यातव्य है कि अक्षाहिन्याम इत्यादि पूर्व वार्तिकों में पूर्व समुदाय पञ्चमी के द्वारा निर्दिष्ट है । इप्स वार्तिक में छठी के द्वारा निर्देश किया गया है । यह केवल वैचित्र्य के लिए है । भाष्य में कहे गए इन दोनों वार्तिकों में आद्यवार्तिक में पूर्व समुदाय में कठी निर्देश तथा उत्तर वार्तिक में पञ्चमी निर्देश किया गया है । का शिका में इन दोनों वार्तिकों को यथावत् पृथक्-पृथक् पढ़ा गया है । लघु सिद्धान्त कौमुदी एबम् सिद्धान्त कौमुदी में दोनों वार्तिकों को मिलाकर एक ही वाक्य में पढ़ दिया गया है ।यहवार्तिक भी वाचनिक है ।
शकन्ध्वादिषु पररूपम् वाच्यम्
'रसिररूपम् 2 इस सूत्र के भाष्य पर यह वार्तिक पढ़ा गया है । 'शाकन्वा दिन पररूपम् वक्तव्यम्' यह वहाँ का भाष्य है । 'शाकन्धवादि' शब्दों में उनकी सिद्धि के अनुकूल पररूप होता है। यह वार्तिक का अर्थ है । जिस
1. लघु सिद्धान्त कौमुदी, अच्सन्धिप्रकरणम् , पृष्ठ 50. 2. अष्टाध्यायी 6/1/94.