Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University
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कात्यायनीय व्याकरण वार्तिक लक्ष्यीकृत ही लक्षित होती हैं । हमने भी इन्हीं वार्त्तिकों को सम्मुख रखकर वार्तिक के स्वरूप पर विचार किया है क्योंकि इन्हीं वार्त्तिकों में कतिपय वार्त्तिकें प्रस्तुत शोध में दर्शायी गई हैं ।
वार्त्तिकों के लिए वैयाकरण वाड्मय में वाक्य, व्याख्यान सूत्र, भाष्यसूत्र, अनुतन्त्र और अनुस्मृति शब्दों का व्यवहार होता है ।
कात्यायन
पाणिनीय व्याकरण पर जितने वार्त्तिक लिखे गए, उनमें कात्यायन का वार्तिक पाठ ही प्रसिद्ध है । महाभाष्य में मुख्यतया कात्यायन के वार्त्तिकों का व्याख्यान है । पत जलि ने महाभाष्य में दो स्थलों में कात्यायन को स्पष्ट शब्दों मैं 'वार्त्तिककार' कहा है ।।
पुरुषोत्तम देव ने अपने त्रिकाण्डशेष कोष में कात्यायन के । काव्य 2. कात्यायन, 3. पुनर्वसु, 4. मेघाजित 5. वररुचि नामान्तर लिखे हैं ।
कात्य पद गोत्रप्रत्ययान्त है । इससे स्पष्ट है कि कात्य वा कात्यायन का मूल पुरुष 'कत' है । स्कन्दपुराण नागर खण्ड 10 130 श्लोक 71 के अनुसार एक कात्यायन याज्ञवल्क्य का पुत्र है । इसने वेदसूत्र की रचना की थी
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स्कन्द
15 न हम पुरानद्यतन इति ब्रुवता कात्यायनेनेह । स्मादिविधि:इति 3/27118 सिदेत्येवं यत्विदं
7/1/1.
2. कात्यायनसुतं प्राप्य वेदसूत्रस्य कारकस
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